शनिवार, मार्च 08, 2008

वार्षिक संगीतमाला २००७ : 'सरताज गीत'- यूँ तो मैं दिखलाता नहीं तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ..

प्रतीक्षा के पल समाप्त हुए। वक्त आ पहुँचा है वार्षिक संगीतमाला के सरताजी बिगुल के बजने का..बात पिछले नवंबर की है। मैं अपनी इस संगीतमाला के लिए पसंदीदा गीतों की फेरहिस्त तैयार करने में जुटा था। पर 15-16 गीतों की सूची तैयार करने के बाद भी अपनी प्रथम दो स्थानों के लायक मुझे कोई गीत लग ही नहीं रहा था। 



पर तब तक मैंने तारे जमीं पर के गीतों को नहीं सुना था। टीवी पर भी शुरुआत में सिर्फ शीर्षक गीत की कुछ पंक्तियाँ दिखाई जा रही थीं। दिसंबर का अंतिम सप्ताह आने वाला था और पहली पॉयदान की जगह अभी तक खाली थी। और तभी एक दिन किसी एफ एम चैनल से इस गीत की पहली दो पंक्तियाँ उड़ती उड़ती सुनाई दीं....

मैं कभी बतलाता नहीं पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूँ तो मैं दिखलाता नहीं, तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ..
.

हृदय जैसे थम सा गया। तुरंत इंटरनेट पर जाकर ये गीत सुना और गीत की भावनाएँ इस कदर दिल को छू गईं कि आँखें नम हुए बिना नहीं रह सकीं।

कुछ गीत झूमने पर विवश करते हैं...
कुछ की मेलोडी मन को बहा ले जाती है...
वहीं कुछ के शब्द हृदय को मथ डालते हैं, सोचने पर विवश करते हैं।


'एक शाम मेरे नाम' की वार्षिक संगीतमालाओं में मैंने ऍसे ही तीसरी कोटि के गीतों को हमेशा से साल के 'सरताज गीत' का तमगा पहनाया है और शायद इसलिए आप में से बहुतों ने मेरी पसंद के सरताज गीत की सही पहचान की है।

जिंदगी में अपने नाते रिश्तेदारों के स्नेह को बारहा हम 'Taken for Granted' ले लेते हैं। हम भी उनसे उतना ही प्रेम करते हैं पर व्यक्त करने में पीछे रह जाते हैं। ऍसे रिश्तों में ही सबसे प्रमुख होता है माँ का रिश्ता ...
ये गीत मुझे याद दिलाता है ...

माँ के हाथ से खाए उन कौरों के स्वाद का.....
बुखार में तपते शरीर में सब काम छोड़ चिंतित चेहरे के उस ममतामयी स्पर्श का... अपनी परवाह ना करते हुए भी अपने बच्चों की खुशियों को तरज़ीह देने वाली उस निस्वार्थ भावना का....

तारे जमीं पर मैंने अंततः फरवरी में जाकर देखी और  प्रसून का गीत तो माँ के बिना अपने आप को मानसिक रूप से असुरक्षित महसूस करते बच्चे की कहानी कहता है, पर सुनने वाला बच्चे का दर्द महसूस करते करते अपने बचपन में लौट जाता है और इसी वज़ह से गीत से अपने आप को इतना ज्यादा जुड़ा महसूस करता है।

वार्षिक संगीतमाला 2006  के सरताज गीत अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजे को लिखने वाले जावेद अख्तर साहब इस गीत के बारे में कहते हैं

"........यूँ तो तारे जमीं के सारे गीत स्तरीय हैं पर वो गीत जो मुझे हृदय की तह को छूता है वो माँ...ही है। आलमआरा के बाद सैकड़ों गीत माँ को याद करते हुए लिखे गए हैं पर फिर भी ये गीत अपनी सादी सहज भावनाओं से हृदय के तारों को झंकृत सा करता चला जाता है। गीत के शब्द, इसकी धुन और बेहतरीन गायिकी इस गीत को इतना प्रभावशाली बनाने में मदद करती है। बस इतना ही कह सकता हू् कि गीत की अंतिम पंक्तियों को सुनते सुनते मेरी आँखें सूखी नहीं रह गईं थीं।...."
शंकर एहसान लॉए की सबसे बड़ी काबिलयित इस बात में है कि वो बखूबी समझते हैं कि गीत के साथ संगीत का पुट उतना ही होना चाहिए जिस से उसकी प्रभावोत्पादकता कम ना हो। बातें बहुत हो गईं अब स्वयं महसूस कीजिए इस गीत को



मैं कभी बतलाता नहीं पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूँ तो मैं दिखलाता नहीं, तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ
तुझे सब है पता, है ना माँ......मेरी माँ

भीड़ में यूँ ना छोड़ो मुझे, घर लौट के भी आ ना पाऊँ माँ
भेज ना इतना दूर मुझको तू, याद भी तुझको आ ना पाऊँ माँ
क्‍या इतना बुरा हूँ मैं माँ, क्‍या इतना बुरा.............मेरी माँ

जब भी कभी पापा मुझे जोर ज़ोर से झूला झुलाते हैं माँ
मेरी नज़र ढूँढे तुझे, सोचूँ यही तू आके थामेगी माँ
तुमसे मैं ये कहता नहीं, पर मैं सहम जाता हूँ माँ

चेहरे पे आने देता नहीं, दिल ही दिल में घबराता हूँ माँ
तुझे सब है पता, है ना माँ......मेरी माँ

मैं कभी बतलाता नहीं, पर अंधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूं तो मैं दिखलाता नहीं, तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ
तुझे सब है पता, है ना माँ......मेरी माँ


इसी गीत का एक टुकड़ा गीत के थोड़ी देर बाद आता है, (जो सामान्यतः इंटरनेट या चिट्ठों पर नहीं दिखाई देता) बच्चे की संवेदनहीन त्रासद स्थिति तक पहुँचने की कथा कहता है

आँखें भी अब तो गुमसुम हुईं
खामोश हो गई है ये जुबां
दर्द भी अब तो होता नहीं
एहसास कोई बाकी हैं कहाँ
तुझे सब है पता, है ना माँ

मेरे लिए ये अपार हर्ष की बात है कि ये गीत इस साल के फिल्मफेयर और अपने RMIM पुरस्कारों के लिए भी सर्वश्रेष्ठ गीत के रूप में चुना गया है।

दोस्तों दो महिने से चलती आ रही इस वार्षिक संगीतमाला के सफ़र पर आप सब मेरे साथ रहे इसका मैं शुक्रगुजार हूँ। ये समय कार्यालय के लगातार आते कामों की वज़ह से मेरे लिए अतिव्यस्तता वाला रहा इसलिए ये श्रृंखला फरवरी में खत्म होने के बजाए मार्च तक खिंच गई। आशा है गीतमाला में पेश किए गए गीतों में से ज्यादातर आपके भी पसंदीदा रहे होंगे। तो ये सफ़र समाप्त करने के पहले एक पुनरावलोकन हो जाए इस संगीतमाला के प्रथम बीस गीतों का


इस संगीतमाला के सारे गीत
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16 टिप्पणियाँ:

Yunus Khan on मार्च 08, 2008 ने कहा…

मनीष मुबारक हो कि इतने बड़े अभियान को तुमने कामयाबी पर पहुंचाया । बहुत जिद शिद्दत और लगन की जरूरत है गीतमाला चलाने के लिए । बहुत सारी बधाईयां हृदय से । और हां ये कहने को मजबूर हूं कि कुछ गाने गीतमाला में ऐसे थे जिन्‍हें तुमने पहली बार 'ध्‍यान से'सुनने पर मजबूर किया । और तब अचंभित भी हुए हम । एक शानदार सिलसिले का शानदार अंजाम । अब केरल यात्रा विवरण शुरू किया जाए ।।।।

Manish Kumar on मार्च 08, 2008 ने कहा…

शुक्रिया यूनुस..आप जैसे मित्रों के साथ रहने से ही इस तरह की श्रृंखला चलाने का मजा आता है।

यूनुस सच कहूँ तो मैंने भी आज चैन की साँस ली है। इन दो महिनों में १५ से २० दिन घर के बाहर बीते जिससे इस सिलसिले को चलाते रहने में कुछ ज्यादा मशक्कत हो गई। अब नतीजा ये है कि बहुत सी पोस्ट पेंडिंग हो गईं हैं..केरल का अभियान भी उनमें से एक है।

खैर इस गीतमाला के दौरान आपने मेरी बात स्वानंद जी से करवाई उसका तहे दिल से शुक्रिया। उस वक्त तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या कहूँ। पर ये जरूर लगा कि वे बेहद विनम्र इंसान हैं।

कुछ गीत आपने नए सुने और कुछ गीत मुझे भी RMIM पुरस्कारों के दौरान सुनने को मिले जो मुझे बेहद पसंद आए। उनमें से एक चक दे इंडिया का मौला मेरे ले ले मेरी जान तो इस गीतमाला में जरूर शामिल होता अगर मैंने उसे पहले सुना होता।

अमिताभ मीत on मार्च 08, 2008 ने कहा…

Great Boss. Project completion पे बधाईयाँ. अब अगला assignment क्या होगा भाई साहब ? ख़ैर इतना यकी़न है कि आप की तरफ़ से होगा तो बेहतरीन ही होगा. हम तैयार बैठे हैं.

Anita kumar on मार्च 08, 2008 ने कहा…

मनीश जी इस अभियान को सोचने से लेकर समापन तक लाने के लिए आप का अभिनंदन्॥ वैसे तो इसमें से कई गाने सुने हुए थे या लगभग रोज ही सुन रहे थे फ़िर भी आप की कमेंटरी के साथ सुनने में मजा ही कुछ और था, एक्दम नये लगते थे। आप को शायद याद न हो इस दौरान मैं ने भी आप से इस गाने की फ़रमाइश की थी और रबी के जुगुनी गाने की भी। प्रसुन्न जी की लेखनी के जलवे से तो कोई अछूता रह ही नहीं सकता, ये गाना सचमुच ताजपोशी के लायक है

rachana on मार्च 08, 2008 ने कहा…

वाह!! क्या दिन चुना है आपने इस पोस्ट के लिये!! आज महिला दिवस है और कुछ ही दिनो मे माँ दिवस.
प्रसून जोशी, संगीतकारों के लिये जितना कहा जाये कम ही होगा.

Poonam Misra on मार्च 08, 2008 ने कहा…

बहुत लगन और मेहनत से आप यह गीतमाला पिरोते हैं. चूंकि आजकल गीत संगीत के लिए समय नहीं है पर आपके इस सफर से मुझे चुनिंदा श्रेष्ठ गीत सुनने को मिला जा रहे हैं.बधाई और धन्यवाद

Unknown on मार्च 08, 2008 ने कहा…

मनीष सयाने [ :-)] , शुक्रिया, मेहरबानी करम - इस मस्त मज़ेदार हिंडोले पे चढ़ाने का , बिल्कुल सही पहली पायदान की पसंद - वैसे अटकल ने रोते गाने पर मुस्कुरा दिया - साभार - मनीष .... [देक्खाआआआआ .... मैंने कहा था ... न ]

Udan Tashtari on मार्च 08, 2008 ने कहा…

सभी चयन उम्दा रहे और यह तो बहुत ही उम्दा..वाह!!! बधाई..

SahityaShilpi on मार्च 08, 2008 ने कहा…

मनीष जी! इस गीत की तारीफ़ करना सूरज को दिया दिखाने जैसा ही होगा. इसे तो आपकी संगीतमाला का सरताज़ होना ही था.
शुक्रिया, इस खूबसूरत सफ़र के लिये!

Urvashi on मार्च 09, 2008 ने कहा…

First time I heard the song was when I saw the movie. I had gone with a friend. Both of us were crying almost throughout the movie! It was a very well directed, well acted movie. Darsheel Safary was sooo good. He emoted so well, even though he doesn't say much in the second half of the movie..
The lyrics of the song truly touch your heart. You just feel like reaching out and hugging little Ishaan.

Well, congratulations on completing your countdown! :)

Charu on मार्च 09, 2008 ने कहा…

congratulations for the completion of this geetmala project. this song really deserved to be on the top of your list.

कंचन सिंह चौहान on मार्च 10, 2008 ने कहा…

मनीष जी बधाई हो इस संगीतमाला के संपूर्ण होने की...रहा सवाल इस गीत का तो मैं इस विषय में जब लिखने लगती हूं तो लिखती ही जाती हूँ...अतः क्या लिखूँ.... हाँ एक बात ज़रूर बाँटना चाहूँगी कि यूनुस जी के चिट्ठे पर ये गीत आने के बाद मन हुआ कि माँ को ये गाना सुनाया जाये...और जब मैने कई बार lyrics रटने के बाद फोन पर माँ को ये गीत सुनाया तो वो बोल पड़ीं..." धत् ये तुम खुद बना कर गा रही हो" ....!

तो कोई भी गीत हो या कविता..सुनने, पढ़ने वाला अपने अंदाज़ में उसे लेता है....और जो गीत हर व्यक्ति से जुड़ा हो शायद वही सर्वोत्तम है।

Kavi Kulwant on मार्च 10, 2008 ने कहा…

बहुत अच्छे भावों के साथ अच्छा लेख
कवि कुलवंत
http://kavikulwant.blogspot.com

Vikash on मार्च 10, 2008 ने कहा…

आखिरकार अंत में आपने बता ही दिया. मैं भी सोच्चूँ कि मेरा फ़ेवरेट गाना लिस्ट में आ काहे ना रिया है?

Abhishek Ojha on मार्च 11, 2008 ने कहा…

ये गाना तो मैंने पहले ही गेस कर किया था. गीतमाला के लिए शुक्रिया और बधाई.

Manish Kumar on मार्च 11, 2008 ने कहा…

जानकर बेहद खुशी हुई कि प्रथम पॉयदान का ये गीत आप सबका भी चहेता निकला। संगीतमाला में साथ बने रहने के लिए आभार।

 

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