तो दोस्तों गीतों के इस सफ़र पर आ पहुँचे हैं हम इस संगीतमाला के ठीक मध्य में। और मेरी तेरहवीं पायदान के हीरो हैं इस गीत के गायक मोहित चौहान ! क्या कमाल किया है उन्होंने इरशाद कामिल के लिखे और प्रीतम द्वारा संगीतबद्ध इस प्यारे से नग्मे में , ये आप गीत सुनकर ही महसूस कर सकते है।
आप में से बहुतों ने मोहित चौहान को शायद ही पहले सुना हो। मैंने पहली बार इन्हें फिल्म 'मैं, मेरी पत्नी और वो' में 'गुनचा कोई तेरे नाम कर दिया...' गाते सुना था और वास्तव में उस गीत को सुनकर मैं मोहित से मोहित हुए बिना नहीं रह पाया था । उस गीत को मैंने इस चिट्ठे पर यहाँ पेश किया था ।
मोहित की संगीत यात्रा शुरु हुई १९९७ में। उन्हें सफलता का स्वाद उसी साल तब मिला जब मोहित की अगुवाई में बने बैंड सिल्क रूट के पहले एलबम बूंदें के गीत डूबा डूबा... को 'चैनल वी' ने अपने शो में साल के गैर फिल्मी एलबम में सबसे बढ़िया गीत के रूप में चुना। सिल्क रूट प्रथम दो वर्षों की चर्चा के बाद धीरे धीरे अपनी लोकप्रियता खोता गया। पिछले चार पाँच वर्षों में मोहित को फिल्मों में गिने चुने मौके मिले हैं। पर चाहे वो 'मैं, मेरी पत्नी और वो' या फिर 'रंग दे वसंती' या फिर इस साल की 'जब वी मेट' , उन्होंने हर मिले मौके से अपनी प्रतिभा को साबित किया है।
मोहित चौहान, हिमाचल से आते हैं। वो कहा करते हैं कि शुरुआती दिनों में अपने गायन में वो गूँज या 'थ्रो' पैदा करने के लिए व्यास नदी के किनारे चले जाते थे। हिमाचल की ज्यादातर संगीत बिरादरी के साथ उन्होंने काम किया हुआ है और वहाँ के लोक संगीत से भी वो जुड़े रहे हैं। आठ साल की उम्र से ही मोहित संगीत में दिलचस्पी लेने लगे। गाने के साथ एकाउस्टिक गिटार में भी वो उतने ही प्रवीण हैं। उनकी गायिकी की खासियत ये है कि वो गीत की संपूर्ण भावनाएँ आत्मसात कर अपनी अदाएगी में झोंक देते हैं।
इस गीत के बोलों को लिखा है पंजाब के इरशाद कामिल ने जो तत्कालीन कविता में डॉक्टरेट की उपाधि से विभूषित है। स्क्रिप्ट लेखन से अपना फिल्मी कैरियर शुरु करने वाले इरशाद अब 'जब वी मेट' में गीतकार की हैसियत से उतरे हैं और आप तो जानते ही हैं कि इस फिल्म के गीत कितने लोकप्रिय हो रहे हैं.
क्या खूबसूरत मुखड़ा दिया है उन्होंने.... ना है ये पाना, ना खोना ही है, तेरा ना होना जाने ,क्यूँ होना ही है ?....और इस लय के साथ जब मोहित की आवाज़ बहने लगती है तो इस गीत से वशीभूत हुए बिना कोई चारा नहीं बचता...

मोहित की संगीत यात्रा शुरु हुई १९९७ में। उन्हें सफलता का स्वाद उसी साल तब मिला जब मोहित की अगुवाई में बने बैंड सिल्क रूट के पहले एलबम बूंदें के गीत डूबा डूबा... को 'चैनल वी' ने अपने शो में साल के गैर फिल्मी एलबम में सबसे बढ़िया गीत के रूप में चुना। सिल्क रूट प्रथम दो वर्षों की चर्चा के बाद धीरे धीरे अपनी लोकप्रियता खोता गया। पिछले चार पाँच वर्षों में मोहित को फिल्मों में गिने चुने मौके मिले हैं। पर चाहे वो 'मैं, मेरी पत्नी और वो' या फिर 'रंग दे वसंती' या फिर इस साल की 'जब वी मेट' , उन्होंने हर मिले मौके से अपनी प्रतिभा को साबित किया है।
मोहित चौहान, हिमाचल से आते हैं। वो कहा करते हैं कि शुरुआती दिनों में अपने गायन में वो गूँज या 'थ्रो' पैदा करने के लिए व्यास नदी के किनारे चले जाते थे। हिमाचल की ज्यादातर संगीत बिरादरी के साथ उन्होंने काम किया हुआ है और वहाँ के लोक संगीत से भी वो जुड़े रहे हैं। आठ साल की उम्र से ही मोहित संगीत में दिलचस्पी लेने लगे। गाने के साथ एकाउस्टिक गिटार में भी वो उतने ही प्रवीण हैं। उनकी गायिकी की खासियत ये है कि वो गीत की संपूर्ण भावनाएँ आत्मसात कर अपनी अदाएगी में झोंक देते हैं।

क्या खूबसूरत मुखड़ा दिया है उन्होंने.... ना है ये पाना, ना खोना ही है, तेरा ना होना जाने ,क्यूँ होना ही है ?....और इस लय के साथ जब मोहित की आवाज़ बहने लगती है तो इस गीत से वशीभूत हुए बिना कोई चारा नहीं बचता...
ना है ये पाना, ना खोना ही है
तेरा ना होना जाने .
क्यूँ होना ही है ?
तुम से ही दिन होता है
सुरमयी शाम आती है
तुमसे ही तुमसे ही
हर घड़ी साँस आती है
ज़िंदगी कहलाती है
तुमसे ही तुमसे ही
ना है या पाना......होना ही है ?
आँखों मे आँखें तेरी
बाहों में बाहें तेरी
मेरा न मुझमें कुछ रहा
हुआ क्या
बातों में बातें तेरी
रातें सौगातें तेरी
क्यूँ तेरा सब ये हो गया
हुआ क्या
मैं कहीं भी जाता हूँ
तुमसे ही मिल जाता हूँ
तुमसे ही तुमसे ही
शोर में खामोशी है
थोड़ी सी बेहोशी है
तुमसे ही तुमसे ही
आधा सा वादा कभी
आधे से ज्यादा कभी
जी चाहे कर लूँ इस तरह, वफा का
छोड़े ना छूटे कभी
तोड़े ना टूटे कभी
जो धागा तुमसे जुड़ गया, वफा का...
मैं तेरा सरमाया हूँ
जो भी मैं बन पाया हूँ
तुमसे ही तुमसे ही
रास्ते मिल जाते हैं
मंजिलें मिल जाती हैं
तुमसे ही तुमसे ही
ना है ये पाना....
तो आइए सुनें जब वी मेट के इस गीत को
6 टिप्पणियाँ:
उदयमान गीतकार का तमगा अच्छा लगा, कोशिश में हूँ की मेरा भी कोई गीत आपकी किसी पायदान पर बजे, खैर, जब वी मेट का संगीत मुझे शुरू शुरू में बिल्कुल भी अपील नही किया, पर जब फ़िल्म देखि तो मज़ा आ गया, इरशाद कामिल का काम सचमुच काबिले तारीफ है, उनका पंजाबी तड़का कमाल का है, मुझे इस फ़िल्म के सभी गाने बेहद पसंद हैं, सच कहूँ तो तारे ज़मीं पर और जब वी मेट मेरी नज़र में पिछले साल के बेहतर संगीत एल्बमस हैं, यह गीत जो आपने चुना है बहुत बढ़िया है, मुझे मोहित की आवाज़ में एक रूहानी स्पर्श मिलता है, आजकल वह 9xn के मिशन उस्ताद में वसुन्दारा दास के साथ धूम मचा रहे हैं, आजकल मैं नगाडा ( इसी फ़िल्म से ) बहुत सुन रहा हूँ, वो गीत किसने गया है बताईयेगा
abhi kuchh din pahale ek saheli ne is gane ka zikra kiya tha...aaj aapke chitthe par sun kar achchha laga
मुझे भी मोहित चौहान का गीत गुन्छा कोई... 'मैं मेरी पत्नी और वो' से बहुत पसंद है...
सजीव वो गीत सोनू निगम ने गाया है
गीत पसंद करने के लिए आप सब का शुक्रिया !
boht hi achacha gaana hai ji. bhai wah! maan gaye mohit.
I looooooooooooooove this song! It's become one of my all time favorites! Mohit Chauhan's voice flows do beautifully! this song would definitely be in my Top 5 of 2007.
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