गुरुवार, जनवरी 14, 2010

जन्मदिन विशेष : कैसे शुरु हुआ इस महान शायर की शायरी का सफ़र ?

अच्छा लगता है जब ये पता लगता है कि आप अपना जन्मदिन किसी ऐसी विभूति के साथ शेयर करते हों जिसे आप दिल से पसंद करते हों और फिर वो व्यक्ति एक बेहतरीन शायर हो तो बात ही क्या! पिछले साल जब वो महान शायर इस दुनिया से चला गया तो उन्हें अपनी श्रृद्धांजलि देने के लिए एक पोस्ट लिखी थी। इस बात का इल्म भी तभी हुआ और उसी वक़्त मैंने ये सोचा था कि अपने जन्म दिवस पर उन्हें जरूर याद करूँगा।

जी हाँ वो शायर हैं सैयद अहमद शाह वल्द अहमद 'फ़राज़' जिनका आज जन्मदिन है।:)

इश्क़िया शायरी के बेताज बादशाह रहे फ़राज़ को शेर ओ शायरी से इश्क़ कैसे हुआ, ये भी एक मज़ेदार किस्सा है। इस किस्से का पता मुझे डा. साजिद अहमद के 'अहा जिंदगी' में लिखे गए लेख से हुआ। इस प्रसंग का उल्लेख डा. साजिद कुछ यूँ करते हैं


वह लड़की बहुत देर से उसकी ओर देख रही थी, "मैंने तुमसे कुछ पूछा था। इतनी देर हो गई तुम कुछ बोलते क्यूँ नहीं।"

"बोल तो रहा हूँ किताब के बहुत से शेर याद हैं।"

गजब ख़ुदा का। अभी बोले हो। इससे पहले कब बताया कि तुम्हें शेर आते हैं? उस लड़की ने चहकते हुए कहा,"एक तो मुसीबत ये है कि तुम बोलते बहुत कम हो। बिल्कुल लड़कियों की तरह शर्माते हो। खुद से बातें करते हो और समझते हो, दूसरों से बोल रहे हो।"

"मुझे शेर क्यूँ नहीं आते होंगे। मेरे वालिद तो खुद शायर हैं। उनके पास कई शायर आते हैं। एक दूसरे को शेर भी सुनाते हैं।"

"अच्छा मान लिया कि तुम्हें शेर आते हैं अब ये बताओ बैतबाजी जानते हो? " "मैं तु्म्हें बताती हूँ, वह एकदम उसकी उस्तादनी बन गई। देखो एक शेर पढ़ा जाता है। यह शेर जिस लफ्ज़ पर खत्म होता है, उस लफ्ज़ के आखिरी हर्फ से जवाब देना होता है यानि दूसरा शेर उसी हर्फ से शुरु होना चाहिए। उस लड़की ने उसे विभिन्न उदाहरणों से समझाया और वो प्रकटतः समझ गया कि बैतबाजी क्या होती है। बल्कि ये खेल तो उसे बेहद आसान लगा।

"आओ उधर चलकर बैठते हैं। मैं तुम्हें इस खेल के कुछ और उसूल सिखाती हूँ।" वह अब उसकी विद्वता से प्रभावित हो चुका था। चुपचाप उठा और उसके साथ चलता हुआ कमरे से दूर,बरामदों में आकर बैठ गया। उस लड़की ने एक शेर पढ़ा, जो 'न' पर खत्म हो रहा था। अब लड़के को एक ऐसा ही शेर पढ़ना था जो 'न' से शुरु हो रहा था। उसने कुछ देर सोचा, और एक शेर तलाश कर लिया। यह शेर 'ब' पर खत्म होता था। लड़की ने फोरन 'ब' से शुरु होने वाला शेर पढ़ दिया। यह सिलसिला चार पाँच शेरों तक चला ही था कि लड़के को शिकस्त माननी पड़ी। उसे स्वीकार करना पड़ा कि शेर याद होना एक बात है और मौके पर उसका याद आ जाना दूसरी बात है। लड़की विजय की हँसी हँस रही थी और लड़के की मर्दाना गैरत पेंचो ताब खा रही थी

यह लड़का सैयद अहमद शाह था और लड़की उसके वालिद के दोस्त की बेटी। उस रोज़ वो लड़की रुखसत हुई, तो अहमद शाह कुछ बुझा बुझा सा दिखाई दे रहा था। उसे शिद्दत से अहसास हो रहा था कि वह बैतबाज़ी में उस लड़की से मात खा गया है। वह एक दृढ़ता से उठा और घर में रखी हुई पिता की किताबों का जायज़ा लेने लगा। अहमद शाह ने कभी उन्हें हाथ नहीं लगाया था, लेकिन आज उसे उसकी मासूम जरूरत उसे उस दस्तरख्वान तक ले आई थी। उसने हाथ बढ़ाया. पहले एक फूल तोड़ा फिर दूसरा.....


ये तो थी अहमद 'फ़राज़' की शेर-ओ-शायरी में आरंभिक दिलचस्पी की वज़ह। पर इतनी तैयारी के बावजूद फ़राज़ अगली बार उसी लड़की से बैतबाजी में फिर मात खा बैठे। नतीज़ा ये हुआ कि वो दिलो जान से शेरो-शायरी के पन्ने पढ़ते और कंठस्थ करते गए। रदीफ, काफ़िया और ग़ज़ल के व्याकरण के तमाम नियम उनके अवचेतन मन में समाते चले गए और एक दिन वो आया कि बैतबाजी खेलते समय जब वो अँटके तो उन्होंने अपना ही एक शेर बना डाला और आखिरकार उस दिन बड़ी मुश्किलों के बाद उन्हें बैतबाजी में पहली फतह मिली। बैतबाजी में अपने शेर रचने का ये सिलसिला जो शुरु हुआ वो फिर कभी नहीं थमा। अब वो रोजमर्रा के अनुभवों को शेर की शक्ल में ढालने लगे। अहमद फ़राज़ ने अपनी शायरी को आगे जिस मुकाम तक पहुँचाया वो तो उर्दू शायरी में रुचि रखने वाले भली भांति जानते हैं।


तो ये थी अहमद फ़राज़ के शेर ओ शायरी से इश्क़ के पीछे की कहानी। चलते चलते फ़राज़ के चंद पसंदीदा शेर आपसे बाँटना चाहूँगा जो शायद पहले आपने ना पढ़े हों

मेरी खुशी के लमहे मुख़्तसर हैं इस क़दर फ़राज़
गुजर जाते हैं मेरे मुस्कुराने के पहले


बहुत अज़ीब हैं मोहब्बत की बंदिशें फ़राज़
ना उस ने क़ैद में रखा ना हम फ़रार हुए

अब मिलेंगे उसे तो खूब रुलाएँगे फ़राज़
सुना है उन्हें रोते हुए लिपट जाने की आदत है


तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तेरी दुहाई न दूँ
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी तुझे दिखाई न दूँ

तेरे बदन में धड़कने लगा हूँ दिल की तरह
ये और बात के अब भी तुझे सुनाई न दूँ

अहमद फ़राज़ भले ही हमारे बीच आज नहीं हों पर यही उम्मीद है कि उनकी शायरी हमारे और आने वाली पीढ़ियों के ज़ेहन से कभी नहीं दूर हो पाएगी।

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14 टिप्पणियाँ:

विश्व दीपक on जनवरी 14, 2010 ने कहा…

इस शुभ-घड़ी और इस सौभाग्य के लिए मनीष जी आपको शुभकामनाएँ।

-विश्व दीपक

मथुरा कलौनी on जनवरी 14, 2010 ने कहा…

खुशकिस्‍मत हैं आप कि अपना जन्‍मदिन एक शायर के साथ शेयर करते हैं।
फराज़ के शेर बहुत भा गये।

शुभकामनाऍं।

राज भाटिय़ा on जनवरी 14, 2010 ने कहा…

जन्‍मदिन की शुभकामनाऍं।

Sanjeet Tripathi on जनवरी 14, 2010 ने कहा…

wah.
badhai aur shubhkamnayein janmdin ki

रंजना on जनवरी 14, 2010 ने कहा…

Janm din ki anant shubhkamnayen...

Aapki posten to din bana diya karti hain...Bahut bahut aabhar,is jankari ko hamare saath share karne ke liye...


Aha jindagi ke koun se ank me yah prakashit hui thi,jara bataiyega na...pata nahi kaise mere najar me yah na aayi...

Manish Kumar on जनवरी 14, 2010 ने कहा…

Ranjana Ji

2009 ke varshik ank mein kafi vristrit lekh chhapa tha.

दिगम्बर नासवा on जनवरी 14, 2010 ने कहा…

जनाब एहमद फ़राज़ के लिखे लाजवाब शेरों के हम भी कायल हैं ........... आपको जानम दिन मुबारक ..........

डॉ .अनुराग on जनवरी 14, 2010 ने कहा…

किस्सा तो पहले पढ़ चूका हूँ......पर आपने दिन बना दिया ....

कंचन सिंह चौहान on जनवरी 15, 2010 ने कहा…

दो किस्से याद आये इस पोस्ट को पढ़ने के बाद

पहला तो ये कि जब कभी भी फेवरिट हीरो हिरोईन लिखना या बताना होता था तो हमेशा मनोज कुमार और माला सिन्हा बताती थी। इस बात की हँसी भी उड़ाई जाती थी कि जब साथ की लड़कियाँ सलमान, शाहरुख और आमिर की दीवानी थीं, तब मैं माता जी के जमाने के मनोज कुमार की ... और फेवरिट फिल्में भी उन्ही की शहीद, उपकार फेवरिट गीत भी उन्ही का लग जा गले कि फिर ये...! बहुत दिन बाद पता चला कि मैँ उनके साथ जन्मदिन भी शेयर करती हूँ, तो और भी खुशी हुई।

(वैसे उनके बाद अब भी मनोज बाजपेई ही पसंद हैं। मनोज नाम में ही कुछ हो शायद।) :)

और दूसरा ये कि कभी हमारी भी हँसी यूँ ही उड़ा दी गई थी अंत्याक्षरी में कविताएं ना याद होने पर। तब मैं बी०ए० सेकण्ड ईयर में थी और मैने मोहल्ले के बच्चों से बटोर बटोर कर उठो लाल अब आँखें खोलो से ले कर मेरे नगपति मेरे विशाल तक याद कर डाली थी।

अब वो सज्जन तो कहीं वकालत कर रहे हैं, मेरी कविताएं उनके सिर के ऊपर से गुज़र जाती हैं.....! मगर मैं तब से इन शब्दों के चक्र में ऐसा उलझी कि अब तक ना निकल पाई.....!:)

rajay ने कहा…

janmdin par shubhkaamnayen.
Faraz ki ek nazm ke sang jo mujhe pasand hai
http://www.youtube.com/watch?v=o2AycXIEWdk

गौतम राजऋषि on जनवरी 15, 2010 ने कहा…

पहले तो जन्म-दिन की विलंब से ही सही, मगर ढ़ेर-ढ़ेर सारी शुभकामनायें....

कितनी हसीन बात है ना ये सचमुच अहमद फ़राज साब के साथ जन्म-दिन शेयर करना, वो शायर जिसे गुनगुनाकर हमारी वाली पूरी पीढ़ी बड़ी हुई है....उनका एक शेर तो जैसे गायत्री मंत्र सा एक बचपन से रटता आ रहा हूँ:-

" किन नज़रों से तुम ने आज देखा
के तेरा देखना देख ना जाये "

Priyank Jain on जनवरी 16, 2010 ने कहा…

janmdiwas ki bahut-bahut badhai,aasha hai aap ise agrim badhai nahi samjhainge.
'Faraz' sahab ke sheroon ke liye dhanyawad.
maslan mai aapko bata doon ki mera janmdin to hamare padosi mulk ka swatantrta diwas hai(14 August), udhar Pak janma ki idhar Priyank,aur to aur humari to rashi bhi ek hi hai......

सुशील छौक्कर on जनवरी 16, 2010 ने कहा…

मनीष जी सबसे पहले तो देरी से सही जन्मदिन की बधाई दे दूँ। नही इस बार भी भूल जाऊँगा। जन्मदिन की ढेरों बधाई और शुभकामनाएं हमारी तरफ से जी। देर से आने वालो को चाकलेट मिलती है क्या?????????? खैर फराज जी पर लिखी आपकी यह पोस्ट भी पसंद आई और ये किस्सा भी पढा। कमाल के शायर है जी फराज साहब। शेर पढकर आनंद आ गया जी।

Himanshu Pandey on जनवरी 17, 2010 ने कहा…

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें !
फराज साहब से रूबरू होना अच्छा लगा । आभार ।

 

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