सोमवार, अगस्त 25, 2008

लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है .सुनिए सुरेश वाडकर की आवाज़ में

बात १९८९ सितंबर की है। BIT MESRA में इंजीनियरिंग का वो प्रथम वर्ष था। स्पोर्ट्स और NSS लेने वालों को सप्ताह में दो दिन, काँलेज के स्पोर्ट्स ग्राउंड में भरी दोपहरी में कॉलेज के दो चक्कर लगाने होते थे। मैदान की स्थिति कुछ ऍसी थी कि ठीक उसके एक सिरे से कुछ दूरी पर कॉलेज का हॉस्टल नंबर सात के सामने का हिस्सा पड़ता था जहाँ हमारे इमीडियट सीनियर रहा करते थे।

ये वही साल था जब यश चोपड़ा निर्देशित फिल्म चाँदनी रिलीज हुई थी और उसके सारे गीत खासकर उसका टाइटल ट्रेक बेहद मशहूर हुआ था। तो जैसे ही हमारे बैच के स्पोर्ट्स और NSS लेने वाले लड़के लड़कियों की दौड़ शुरु होती एक अलग तरह का ड्रामा शुरु हो जाता। जब कन्याओं का दस्ता हॉस्टल नंबर सात वाले सिरे के पास पहुँचता, वहाँ के लड़के अपनी खिड़कियों की पैरापेट पर चढ़ कर समवेत स्वर में अपना गायन शुरु कर देते...चाँदनी ओ मेरी चाँदनी..... । लड़कियाँ झेंपती, मुस्कुरातीं और आगे बढ जातीं।वहीं हमारे बैच के लड़के अंदर ही अंदर कुपित होते..सोचते कि इन्हें देख कर हमें इस गीत को गाने की इच्छा होती है पर मुए ये गा रहे हैं। पर मेरी आज की ये पोस्ट इसी फिल्म के दूसरे गीत से जुड़ी हुई है..

जैसा कि आप को पता ही होगा कि चाँदनी का संगीत दिया था शिव- हरि ने यानि महान संगीतज्ञ संतूर वादक शिव कुमार शर्मा और बाँसुरी वादक हरि प्रसाद चौरसिया की जोड़ी ने। शिव-हरि की ये जोड़ी एक ज़माने में यश चोपड़ा की हर फिल्म में नज़र आती थी। चाँदनी के आलावा सिलसिला, लमहे ओर डर में उनके दिए संगीत को आज भी लोग उतने ही चाव से सुनते हैं। इस फिल्म का एक गीत था जिसे सुरेश वाडकर ने गाया था लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है... जो मुझे अस्सी के बाद के सावन के गीतों में सबसे दिल के करीब लगता है।

गीत की शुरुआत, संतूर की मधुर धुन से होती है और फिर मुखड़े और पहले अंतरे के बीच के इंटरल्यूड में अन्य वाद्य यंत्रों के साथ जिस खूबसूरती से इसका प्रयोग हुआ उसमें शिव कुमार शर्मा की छाप स्पष्ट दिखती है। वहीं अंतरे के बीच में अनुपमा देशपांडे के आलाप का भी बेहतरीन इस्तेमाल किया गया है। सुरेश वाडकर के सनी, लेकिन, सदमा में गाए गीतों की श्रेणी में मुझे ये गीत भी लगता है।

लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है
लगी आज सावन की ...

कुछ ऐसे ही दिन थे वो जब हम मिले थे
चमन में नहीं फूल दिल में खिले थे
वही तो है मौसम मगर रुत नहीं वो
मेरे साथ बरसात भी रो पड़ी है
लगी आज सावन की ...

कोई काश दिल पे ज़रा हाथ रख दे
मेरे दिल के टुकड़ों को एक साथ रख दे
मगर यह है ख्वाबों ख्यालों की बातें
कभी टूट कर चीज़ कोई जुड़ी है
लगी आज सावन की....

आनंद बख्शी का लिखे इस गीत के शब्द कुछ ऍसे हैं कि इसे सुनते ही दिल में मायूसी के बादल घुमड़ने लगते हैं और आखें खुद-ब-खुद नम हो जाती हैं। तो आइए सुनें हृदय को छूते इस गीत को


'एक शाम मेरे नाम' पर संगीत के सावनी रंगों में रंगिए इन प्रविष्टियों के साथ
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13 टिप्पणियाँ:

रंजू भाटिया on अगस्त 25, 2008 ने कहा…

गाना तो यह सुंदर है ही .इस फ़िल्म से जुडा आपका यह संस्मरण भी अच्छा लगा :) शुक्रिया इसको सुनवाने का

बेनामी ने कहा…

मनीष भाई ,
सुरेश वाडकर को अक्सर लोग सुरेश वाडेकर(शायद अजीत वाडेकर पूर्व परिचित होने के कारण!) कहते हैं और मेधा पाटकर को मेधा पाटेकर (शायद नाना पाटेकर ज्यादा परीचित होने के कारण?) । अब यह ग़लती न हो।

pallavi trivedi on अगस्त 25, 2008 ने कहा…

aapne bahut madhur geet ki yaad dila di...chaandni ke sabhi gaane bejod the...

पारुल "पुखराज" on अगस्त 25, 2008 ने कहा…

पूरी फ़िल्म का सबसे सुन्दर गीत है--सुनवाने का शुक्रिया

डॉ .अनुराग on अगस्त 25, 2008 ने कहा…

सुरेश जी की अपनी एक खास आवाज है.....सदमा का ए जिंदगी ...चप्पा चप्पा .....निंदिया .ऐसे कितने गाने जो खास तौर से गुलज़ार के लिखे है मुझे बेहद पसंद है......आपका संस्मरण बेहद बढ़िया है.....

Manish Kumar on अगस्त 25, 2008 ने कहा…

अफ़लू भाई जब आपकी टिप्पणी को देखा तब कार्यालय में था। भूल सुधार वहीं कर दिया था । मेधा पाटकर को तो उनके सही नाम से जाना है पर सुरेश जी के बारे में मेरी ये गलतफहमी आपकी वज़ह से ही दूर हुई। आपका बहुत शुक्रिया !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on अगस्त 25, 2008 ने कहा…

ये गीत मेरे पसँदीदा गीतोँ की लिस्ट मेँ से एक है -आपके कोलेज के दिनोँ की बातेँ भी रोचक रहीँ धन्यवाद मनीष भाई --
-लावण्या

Yunus Khan on अगस्त 25, 2008 ने कहा…

मनीष एक साथ बहुत चीजें याद आ गयीं । कॉलेज वाले दौर में ये हमारे भी पसंदीदा गानों में से रहा है । पर पता नहीं क्‍यों अब इस गाने से विरक्ति हो गई है । समय के साथ शायद टेस्‍ट बदल जाता है । अब ये गाना उतना गहन नहीं लगता । फिर भी ऐसा नहीं है कि हम इसे सुनने से कतराते हों । बस ऐसा ही है जैसे कभी कभी पुराने दोस्‍तों की गहनता कम हो जाती है, वैसे ही हमारे मन में इस गाने की गहनता कम हो गयी है ।

Abhishek Ojha on अगस्त 26, 2008 ने कहा…

हमारे कॉलेज में इतना तो प्रसिद्द नहीं था, लेकिन दो लोग इसके कद्र दान थे... गाने एक अलावा विडियो के भी... विडियो भी यादगार है.

Smart Indian on अगस्त 26, 2008 ने कहा…

Excellent song, thanks!

कंचन सिंह चौहान on अगस्त 26, 2008 ने कहा…

post padhane ke sath sath Yunus ji ki baat hi mere man me bhi aa rahi thi..par lagta hai in sab gano se virakti hone ka karan in cassets ko ghuma ghuma ke din raat sun lena hai...! lekin us vaqta jab mai 9th me thi is film ka bolbala tha.chandani suit, chandani churi aur dholak par ladkiyo.n ka MERE HATHO ME NAU NAU CHURIYA.N HAI' geet usi yug me le ke chala jata hai... !

डॉ .अनुराग on अगस्त 26, 2008 ने कहा…

अहमद फराज नही रहे बस यही बांटने दुबारा आया हूँ....

Sajeev on अगस्त 29, 2008 ने कहा…

मनीष भाई माफ़ कीजिये ये पोस्ट पहले छूट गई मुझसे, यूँ तो सावन के सभी गीत मुझे बहुत पसंद हैं, हाँ इस गीत के साथ सही कहा आपने बहुत सी यादें जुड़ी हुई है, तब श्याद दसवीं में था जब ये फ़िल्म आयी थी, मुझे फ़िल्म बिल्कुल नही पसंद आयी पर हाँ गाने सभी बेहद करीब हैं आज भी, खासकर ये गीत और "तेरे मेरे होंठों पर", सुरेश वाडकर के क्या कहने, कम गाये हैं पर जो भी गाया है खूब गाया है

 

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