इससे पहले कि क़तील के गीतों और गीतनुमा ग़ज़लों का जिक्र किया जाए, आज की शाम का आग़ाज क़तील की इस लोकप्रिय ग़ज़ल के चंद अशआरों से करते है्
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं
शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिये
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं
जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैं
रब्ता बाहम पे हमें क्या न कहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैग़ाम से जल जाते हैं
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं
शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिये
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं
जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैं
रब्ता बाहम पे हमें क्या न कहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैग़ाम से जल जाते हैं
क़तील ने एक शायर के रूप में तो प्रसिद्धि पाई ही, साथ ही साथ तमाम पाकिस्तानी और हिंदी फिल्मों के लिए गीत भी लिखे। जनवरी 1947 में क़तील को लाहौर के एक फिल्म प्रोड्यूसर ने गाने लिखने की दावत दी, उन्होंने जिस पहली फिल्म में गाने लिखे उसका नाम था ‘तेरी याद’ । वैसे तो हिंदी फिल्मों में 'गुमनाम' और फिर 'तेरी कहानी याद आई' में लिखे उनके गीत बेहद कर्णप्रिय हैं पर क़तील के लिखे गीतों में जो सबसे अधिक चर्चित हुआ वो था "मोहे आई न जग से लाज ....के घुँघरू टूट गए।" हम लोगों ने तो पहली बार इसे अनूप जलोटा के स्वर में सुना था पर बाद में पता चला कि इसे तो कितने ही गायकों ने अपनी आवाज़ से संवारा है। क़तील मज़ाहिया लहजे में कहते थे कि "जब तक भारत और पाकिस्तान का कोई भी गायक इस गीत को नहीं गा लेता वो गवैया नहीं कहलाता"।
अक्सर फिल्मों के गीत लिखने और साथ साथ शायर करने वालों को ठेठ साहित्यिक वर्ग हेय दृष्टि से देखता है। क़तील को भी इस वज़ह से अपने आलोचकों का सामना करना पड़ा। इसलिए इस गीत को मुशायरे में पढ़ते वक़्त क़तील ने इस बात पर जोर दिया कि उनके गीत सिर्फ फिल्मी नहीं बल्कि इल्मी भी होते हैं। देखिए इस मुशायरे में वो ये गीत किस अदा से पढ़ रहे हैं।
7 टिप्पणियाँ:
कतील साहब को सुनकर मजा आ गया।
कुछ पाँव के छाले, कुछ आँसू, कुछ गर्द-ए-सफ़र, कुछ तनहाई
उस बिछड़े हुए हमराही की एक-एक निशानी याद आई
waaah
कतील साहब की इतनी सुन्दर रचनाएं सुनवाने का शुक्रिया।
ह्म्म्म.... आज पिछली ३ पोस्ट पढ़ी. ये रचनाये आप ही सुनवा सकते हैं.. छुट्टी में कहाँ गए हैं ये नहीं बताया आपने?
kateel saahab ki to main fan hoon..shukrya unke baare mein charcha karne ke liye...
अभिषेक बस घर तक यानि पटना गया था।
barish ho aur kateel sahab ki ghazal kya baat hai
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