
पिछली पोस्ट में वादा था चौथी और तीसरी पायदानों के गीतों को पेश करने का। तो हुजूर, तीसरी पायदान पर तो रिमझिमाता सावन है और चौथी पर एक हक़ीकत जो सपना सा हो जाने का अहसास देने लगी है। पर एक और खासियत है चौथे क्रमांक के इस गीत में..ये एक युगल गीत है।
अब तक की कड़ियाँ किशोर के एकल गीतों पर ही मैंने केंद्रित रखीं थी। पर एक भी युगल गीत ना रहे तो कुछ अटपटा सा लगता है। किशोर के युगल गीतों की चर्चा करने से पहले कुछ बातें किशोर दा की, जो जुड़ी हैं उनके सहगायकों से।
आखिर क्या सोचते थे किशोर, अपने समकालीनों के बारे में ?लड़कपन से ही किशोर
के. एल. सहगल के दीवाने थे। बचपन मे वे अपनी पॉकेटमनी से सहगल साहब के रिकार्ड खरीदा करते थे। सही मायने में वो उनको अपना गुरु मानते थे।जब उन्होंने खुद बतौर गायक काफी ख्याति अर्जित कर ली तो एक संगीत कंपनी ने उनके सामने सहगल के गीतों को गाने का प्रस्ताव रखा। किशोर ने साफ इनकार कर दिया। उनका कहना था....
" मैं उनके गीतों को और बेहतर गाने की कोशिश क्यूँ करूँ ? कृपया उन्हें हमारी यादों में बने रहने दें। उनके गाये गीत, उनके ही रहने दें। मुझे ये किसी एक शख्स से भी नहीं सुनना कि किशोर ने सहगल से भी अच्छा इस गीत को गाया। "
सहगल का विशाल छायाचित्र हमेशा उनके घर के पोर्टिको की शोभा बढ़ाता रहा। और उसी तसवीर के बगल में
रफी साहब की तसवीर भी लगी रहती थी। किशोर, रफी की काबिलियत को समझते थे और उसका सम्मान करते थे। सत्तर के दशक में जब किशोर दा की तूती बोल रही थी, तो उनके एक प्रशंसक ने कह दिया....
"किशोर दा , आपने तो रफी की छुट्टी कर दी।..."उस व्यक्ति को प्रत्त्युत्तर एक चाँटे के रूप में मिला। किशोर और रफी के फैन आपस में एक दूसरे की कितनी खिंचाई कर लें, वास्तविक जिंदगी में कभी इन महान गायकों के बीच आपसी सद्भाव की दीवार नहीं टूटी।
किशोर और लता जी के युगल गीत काफी चर्चित रहे हैं। इतने सालों के बाद आज भी
'आँधी', 'घर', 'हीरा पन्ना', 'सिलसिला' और 'देवता' जैसी फिल्मों के गीत को सुनने वालों की तादाद में कमी नहीं आई है।
किशोर, लता को अपना सीनियर मानते थे और इसीलिए किसी गीत के लिए उन्हें जितना पैसा मिलता वो उससे एक रुपया कम लेते।और लता जी, साथ शो करतीं तो तारीफ़ों के पुल बाँध देतीं। हमेशा किशोर को किशोर दा कह कर संबोधित करतीं। ये अलग बात थी कि उम्र में किशोर लता से मात्र एक महिना चौबीस दिन ही बड़े थे।
किशोर और आशा जी को पंचम की धुनों में सुनने का आनंद ही अलग है। अपने एक साक्षात्कार में आशा जी ने कहा था कि
"किशोर एक जन्मजात गायक थे जो गाते समय आवाज़ में नित नई विविधता लाने में माहिर थे। इसीलिए उनके साथ युगल गीत गाने में मुझे और सजग होना पड़ता था, गायिकी में उनकी हरकतों को पकड़ने के लिए।"
किशोर दा भी मानते थे कि उनके चुलबुले अंदाज को कोई मिला सकता है तो वो थीं आशा। इसीलिए कहा करते
"She is my match at mike. "
चौथी पायदान के इस गीत को चुनते वक्त कई और गीत मेरे ज़ेहन में आए। सबसे पहले बात '
आँधी' के गीतों की की। इस फिल्म में यू् तो
इस मोड़ से जाते हैं.....तुम आ गए हो....और तेरे बिना जिंदगी में कोई शिकवा... जैसे बेहतरीन गीत हैं। पर इन गीतों को जब सुनता हूँ तो मुझे लता, गुलज़ार और पंचम दा ही मन में छाए से लगते हैं। किशोर ने यकीनी तौर पर अपने अंतरे बखूबी गाए हैं पर इन विभूतियों के सामने वो थोड़े पीछे चले जाते हैं।
पर उन्हीं लता पर वो गुलज़ार और पंचम द्वारा रचित
'घर' के इस गीत पर भारी पड़ते हैं। क्या बोल लिखे गुलज़ार ने और कितनी खूबसूरती से उन्हें निभाया किशोर और लता ने... आप भी आनंद उठाएँ
9 टिप्पणियाँ:
उस व्यक्ति को प्रत्त्युत्तर एक चाँटे के रूप में मिला। किशोर और रफी के फैन आपस में एक दूसरे की कितनी खिंचाई के लें
किशोअरदा और रफी साहब के बीच में बहुत प्रेम था यह कई जगहों पर पढ़ा परन्तु रफी साहब के नाम पर ही चल रही एक साईट पर रफी- किशोर में श्रेष्ठ कौन पर इतना लम्बा विवाद चला कि पाठकों ने 815 टिप्प्णीयाँ दर्ज करवा कर शायद एक रिकॉर्ड बना दिया।
आपकी यह लेखनी और गीत सचमुच बेहतर रहे। बुरा ना मानिये मैं भी किशोर कुमार को एक अभिनेता के तौर पर ज्यादा पसंद करता हूँ गायक किशोरकुमार की बजाय ! परन्तु पिछले कुछ अंकों में जो गाने आये हैं उन्हें मैं बहुत पसन्द करता हूँ।
आपको बहुत बहुत धन्यवाद स्व, किशोरकुमार पर लेखमाला लिखने के लिये।
वाह जी, पुनः एक शानदार अंक.आपसी सद्भाव ही तो महानता का परिचायक है. गाने एक से एक लाये हैं.
चलिये इन्तजार है कि कुछ पारिवारिक जानकारी भी जानें.
आभार !!
उपर की टिप्प्णी में रफी किशोर के विवाद पर रिकॉर्ड टिप्प्णीयों वाला लिंक देना रह गया और वे सारी टिप्प्णीय़ाँ यहाँ है।
थोडी देर से आये हैं, क्षमा कीजियेगा ।
किशोरकुमारजी के गीतों की इस कडी की सारी प्रविष्टियाँ सहेज कर रखने लायक हैं ।
साथ ही आपके लगाये हुये चित्र मन को बहुत पीछे ले गये हैं जहाँ संगीत एक साधना होती थी दिखावा नहीं ।
आपकी आवाज ने बिल्कुल भी नहीं झिलाया, कसम से सच्ची...
आगे भी गुनगुनाते रहें और सुनवाते रहें ।
बिल्कुल सही कहाँ मनीष जी आपने..
आंधी के गीतों में तो लताजी सचमुच भरी पड़ती है किशोरदा पे...
पर किशोरदा भी भी कम नही..
अगर आप फ़िल्म पिया का घर का यह गाना सुने...
" ये जीवन है इस जीवन का " तो आपकों भी शायद लताजी के गाने से अच्छा किशोरदा का गाना लगेगा..
लताजी की आवाज कुदरत की देन है.. पर किशोरदा की आवाज सदा विविधता का पर्याय रहेगी...
bahut khub shradhanjali hai!!! barson ho gaye the tumhari awaz mein geet sunkar!!!!....
Thanks for sharing
Cheers
सागर भाई रफी और किशोर के समर्थकों को लड़ने दीजिये. मेरे लिए तो दोनों महान कलाकार थे जिनकी गायन शैली भिन्न थी. रफी के पास गायन की विविधता थी तो किशोर के पास ऐसी आवाज़ जो आम जन को गुनगुनाने पर मजबूर कर दे.
इस श्रृंखला की आखिरी कड़ी में मैं आपको ये बताऊंगा की ख़ुद किशोर अपनी अदाकारी को किस तरह लेते थे.
लेख और गीतों को आपने पसंद किया जान कर खुशी हुयी :)
समीर जीं और नीरज इस सफर में साथ साथ चलने का शुक्रिया. आशा है आप सब आगे भी बने रहेंगे.
आलोक जी ये जीवन है ..सच में एक खूबसूरत नगमा है.
डॉन हाँ सही कहा आपने. झेलने का शुक्रिया :)
जो हमे अच्छा लगे.
वो सबको पता चले.
ऎसा छोटासा प्रयास है.
हमारे इस प्रयास में.
आप भी शामिल हो जाइयॆ.
एक बार ब्लोग अड्डा में आके देखिये.
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