सोमवार, मार्च 11, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 रनर्स अप : अभी मुझ में कहीं,बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी...

वार्षिक संगीतमाला 2012 की दूसरी पॉयदान पर खड़ा है वो गीत जिसे गाया सोनू निगम ने,धुन बनाई अजय अतुल ने और बोल लिखे अमिताभ भट्टाचार्य ने। जी हाँ सही पहचाना आपने वार्षिक संगीतमाला 2012 के रनर्स अप खिताब जीता है फिल्म अग्निपथ के गीत अभी मुझ में कहीं,बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी ने।

 
अमिताभ भट्टाचार्य के बोलों में छुपी पीड़ा को इस तरह से सोनू निगम ने अपनी आवाज़ से सँवारा है कि ये गीत आम जनता और समीक्षकों दोनों का चहेता बन गया। अपनी कहूँ तो अमिताभ के दिल को छूते शब्द, सोनू की शानदार गायिकी और अजय अतुल के मन मोहने वाले इंटरल्यूड्स इस गीत को इस साल के मेरे प्रियतम गीतों की श्रेणी में ला खड़ा करते हैं।

अजय अतुल का संगीत हिंदुस्तानी और पश्चिमी वाद्य यंत्रों का बेहतरीन मिश्रण है। मुखड़े के पहले का पियानो हो या इंटरल्यूड्स में वॉयलिन की सिम्फनी, बोलों के साथ बहती जलतरंग की ध्वनि हो या सोनू की आवाज़ से खेलते ढोल और तबले जैसे ताल वाद्य, सब कुछ गीत के साथ यूँ आते हैं मानो उनकी वही जगह मुकर्रर हो। 

अजय गोगावले, सोनू निगम और अतुल गोगावले

अजय अतुल ने इस गीत के लिए सोनू निगम को ही क्यूँ चुना उसका सीधा जवाब देते हुए कहते हैं कि धुनें तैयार करते वक़्त ही हमें समझ आ जाता है कि इस पर किस की आवाज़ सही बैठेगी। सोनू जब गीत की लय को यह लमहा कहाँ था मेरा की ऊँचाई तक ले जाते हैं तो गीत में समाहित दर्द की अनुभूति आपको एकदम से द्रवित कर देती है।

कुछ साल पहले तक सोनू निगम की आवाज़ हर दूसरे गीत में सुनाई देती थी। पर नए संगीतकार, नई आवाज़ों और रिकार्डिंग के मशीनीकरण की वज़ह से पिछले कुछ सालों से उन्हें अपने मन मुताबिक मौके कम मिल रहे हैं। वे खुद इस बात से कितने आहत हैं वो पत्रिका 'अहा ज़िंदगी' को दिए गए उनके हाल के वक़्तव्य से पता चलता है जिसमें वो कहते हैं

"तकनीक का असर अब संगीत पर भी दिखने लगा है। नई नई मशीनें और सॉफ्टवेयर आ गए हैं। ऐसे सॉफ्टवेयर हैं जो सुर में ना गाने वालों को भी सुरीला बना देते हैं। इसका कुप्रभाव उन गायकों पर होता है, जो रियाज करते हैं और संगीत को गहनता से लेते हैं। इससे मनोबल भी टूटता है, क्योंकि कोई कुछ भी गा रहा है। सकारात्मक दृष्टि से देखें तो इस तकनीक की वज़ह से अब बहुत से लोग गा पा रहे हैं, लेकिन नकारात्मक पहलू ये है कि जो सही मायने में गायक है उन्हें उनका पूरा हक़ नहीं मिलता।"

पर आख़िर ये गीत हमसे क्या कहता है? यही कि ज़िंदगी में अगर कोई रिश्ते ना हो, तो फिर उस जीवन को जीने का भला क्या मक़सद? व्यक्ति ऐसे जीवन को काटता भी है तो बस एक मशीनी ढंग से। सुख दुख उसे नहीं व्यापते। पीड़ा वो महसूस नहीं कर पाता। खुशी की परिभाषा वो भूल चुका होता है। इस भावशून्यता की स्थिति में अचानक ही अगर रिश्तों की डोर फिर से जुड़ती दिखाई दे तो फिर समझ आता है कि मैंने अब तक क्या खोया ? अमिताभ इस गीत में बरसों से दरके एक रिश्ते के फिर से जुड़ने से नायक की मनोदशा को अपने शब्दों द्वारा बेहद सहज पर प्रभावी ढंग से श्रोताओं के सम्मुख लाते हैं। तो आइए सुनते हैं इस गीत को..

अभी मुझ में कहीं,बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी
जगी धड़कन नयी, जाना जिंदा हूँ मैं तो अभी
कुछ ऐसी लगन इस लमहे में है
यह लमहा कहाँ था मेरा

अब है सामने, इसे छू लूँ ज़रा
मर जाऊँ या जी लूँ ज़रा
खुशियाँ चूम लूँ
या रो लूँ ज़रा
मर जाऊँ या जी लूँ ज़रा
अभी मुझ में कहीं,बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी....

धूप में जलते हुए तन को छाया पेड़ की मिल गयी
रूठे बच्चे की हँसी जैसे, फुसलाने से फिर खिल गयी
कुछ ऐसा ही अब महसूस दिल को हो रहा है
बरसों के पुराने ज़ख्मों पे मरहम लगा सा है
कुछ ऐसा रहम, इस लमहे में है
ये लमहा कहाँ था मेरा

अब है सामने, इसे छू लूँ ज़रा..

डोर से टूटी पतंग जैसी थी ये ज़िं
दगानी मेरी
आज हूँ कल हो मेरा ना हो
हर दिन थी कहानी मेरी
इक बंधन नया पीछे से अब मुझको बुलाये
आने वाले कल की क्यूँ फिकर मुझको सता जाए
इक ऐसी चुभन, इस लमहे में है
ये लमहा कहाँ था मेरा...



तो अब घड़ी पास आ गई है सरताज बिगुल के बजने की पर उससे पहले करेंगे पिछले साल के संगीत का एक पुनरावलोकन !
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13 टिप्पणियाँ:

विधुल्लता on मार्च 11, 2013 ने कहा…

इतनी शिद्दत्त से लिखा है आपने इस दीत के बारे में के पढ़े बिना नहीं रहा गया ..इसके बारे में पहलेसोचा नहीं था

Kanchan Khetwal on मार्च 11, 2013 ने कहा…

वाकई, ये अत्यंत ही भावपूर्ण गीत मेरा भी प्रिय है. शब्दों और संगीत का ऐसा सुन्दर मिश्रण आजकल के गीतों में कम ही मिलता है.

Neha Sharan on मार्च 11, 2013 ने कहा…

love this!!

Sonroopa Vishal on मार्च 11, 2013 ने कहा…

Adbhut geet hai ye..kitni baar suniye man me fir se sunne ki lalak baki rahti hai..

Chander Datta on मार्च 11, 2013 ने कहा…

bahut sundar!...kitne man se gaya hai!!...amazing!...love it:-)

प्रवीण पाण्डेय on मार्च 11, 2013 ने कहा…

यह गीत हृदय छू गया।

***Punam*** on मार्च 12, 2013 ने कहा…

thanx for sharing...

travel ufo on मार्च 12, 2013 ने कहा…

बढिया निर्णय

rashmi ravija on मार्च 12, 2013 ने कहा…

यह मेरा सबसे पसंदीदा गीत है, उसके विषय में इतने विस्तार से जानकारी देने का शुक्रिया

Cifar on मार्च 26, 2013 ने कहा…

atiuttam geet aur iss position ke liye bilkul upyukt

Manish Kumar on अप्रैल 01, 2013 ने कहा…

आप सब ने तहे दिल से इस गीत को पसंद किया जान कर बेहद प्रसन्नता हुई। अपने विचार से अवगत कराने के लिए आभार।

parag on अप्रैल 10, 2013 ने कहा…

-Issme koi sandeh nahi hain ki Sonu Nigum ko gaane bhale hi kum mil rahe ho, kintu dheerdh kaalik gane ekka- dukka mil hi jata hain
- Ye gaana mujhe bhi behadh pasandh hain, kintu kahi ni kahi ye khayaan bhi dil ke kisi kone mein aata hain ki mukhre aur antre mein gurnwatta ka kaafi anathar hain.
- Shruwaat jis sthar ki hain, vo aage jaake uss sthar kee nahi reh paati hain.
- Manishji aapko ye baat ( Anthre aur mukhre mein kaafi anthar) phir le aaya dil Barfi gaane mein prateet huyi. Mujhe iss gaane mein bhi ye cheeez kaafi mehsoos huyi

Unknown on जनवरी 07, 2014 ने कहा…

Really very heart toching song.Thanks for sharing Manish ji.

 

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