गुरुवार, फ़रवरी 21, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 6 : साँवली सी रात हो..ख़ामोशी का साथ हो

वार्षिक संगीतमाला की आठवीं और सातवीं पॉयदान के गीत को सुनाने की बजाए आज आपको सीधे लिए चलते हैं छठी पॉयदान के गीत की तरफ़। आप भी सोचे रहे होंगे कि ये क्या बात हुई पर क्या कहें हुजूर संत वैलेंटाइन ने मुझे आज के दिन इस गीत के आलावा किसी और गीत के बारे में लिखने की सख़्त ताकीद कर दी है। दिल तो पहले ही उनके खेमे में था और अब तो दिमाग भी संत वैलेंटाइन का कोपभाजन नहीं बनना चाहता। तो आइए जानते हैं कि ऐसा क्या है छठी पॉयदान के गीत में जो मुझे वार्षिक संगीतमाला का क्रम तोड़ने पर मजबूर कर रहा है?
अरिजित, स्वानंद और प्रीतम

यूँ तो फिल्म बर्फी के तमाम गीत इस साल खूब खूब बजे और सराहे गए हैं पर इनमें एक ऍसा गीत भी है जो टीवी के पर्दे पर ज्यादा नहीं दिखा। फिल्म देखते हुए ख़ुद मेरा ध्यान इसके बोलों पर नहीं गया। कुछ गीत ऐसे होते हैं जिन्हें हृदय के अंतःस्थल से महसूस करने के लिए आप तनिक व्यवधान भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। ये गीत उसी श्रेणी का गीत है। तो मेरा सुझाव ये है कि अगर इसका पूर्ण आनंद उठाना हो तो रात्रि के प्रथम प्रहर का इंतज़ार कीजिए। वसंत की इस हल्की ठंड में अपने कमरे में जाइए और रोशनी बंद कर चुपचाप लिहाफ के अंदर दुबक लीजिए और फिर उस प्यारे से अँधेरे में गीत की हर पंक्ति को अपने आप तक पहुँचने दीजिए। फिर देखिए स्वानंद किरकिरे की अद्भुत लेखनी का जादू किस तरह आपको इश्क़ की ख़ुमारी से मदहोश कर देता है।

घुप्प अँधेरी काली रातों ने आपको कभी ना कभी तो डराया होगा? या उसके उलट  रोशनी से जगमगाती रातों ने आपकी ज़िंदगी में खुशियाँ बिखेरी होंगी। पर साँवली सी रात ..रात के इस रूप का रहस्य तो बस स्वानंद की कलम ही खोल सकती थी। कितनी खूबसूरती से मुखड़े में अपने हमसफ़र के साथ बिताए उन हसीन लमहों का ख़ाका खींचते हुए वो कहते है. साँवली सी रात हो ख़ामोशी का साथ हो..बिन कहे,बिन सुने बात हो तेरी मेरी..नींद जब हो लापता..उदासियाँ ज़रा हटा..ख्वाबों की रजाई में..रात हो तेरी मेरी

उफ्फ.. अब शब्दों कै कैनवास पर इससे ज्यादा रूमानी रंग भला क्या भरे जा सकते थे?.. ? मुखड़े के पहले प्रीतम का संगीत संयोजन नदी की कलकल बहती धारा सा लगता है और फिर अरिजित सिंह की फुसफुसाती आवाज़ हृदय को स्पंदित सी करती है। स्वानंद की कल्पनाशीलता दूसरे अंतरे नए आयाम तलाशती है जब वो कहते हैं बर्फी के टुकड़े सा,चन्दा देखो आधा है...धीरे धीरे चखना ज़रा.. हूँ ..हँसने रुलाने का..आधा पौना वादा है, कनखी से तकना ज़रा :)

वैसे एक रोचक तथ्य ये है कि ये अंतरा शुरु में कुछ दूसरी शक़्ल लिए था। क्या आप नहीं देखना चाहेंगे कि किस तरह फिल्म के पर्दे पर आने के पहले काग़ज़ के टुकड़ों पर ये गीत पलते बढ़ते हैं?



और हाँ ये बता दूँ कि ये चित्र मुझे एक शाम मेरे नाम के पाठकों से बाँटने के लिए साथी ब्लॉगर अंकित जोशी ने मुहैया कराया है।

अरिजित ने भी इस गीत को ठीक ठाक निभाया है। ये जरूर है  है कि अरिजित इस गीत को उस सहजता से नहीं गा पाए जिसकी जरूरत थी और कहीं कहीं वो बोलों पर ज्यादा ही मेहनत करते दीखते हैं ।  उनका एक जगह  'रजाई' को 'राजाई' कहना थोड़ा खलता जरूर है। पर स्वानंद के दिल को छूते शब्द और उनके अनुरूप प्रीतम का दिया संगीत श्रोताओं को ये गीत बार बार सुनने को बाध्य करता है।

तो वेलेंटाइन डे के अवसर पर ये गीत मेरे उन सभी मित्रों को समर्पित है जो ख़ुद को Die Hard Romantic मानते हों...तो आइए बहें प्रेम की अविरल धारा में इस गीत के साथ..


साँवली सी रात हो
ख़ामोशी का साथ हो
हम्म.. साँवली सी रात हो
ख़ामोशी का साथ हो.
बिन कहे,बिन सुने
बात हो तेरी मेरी
नींद जब हो लापता
उदासियाँ ज़रा हटा
ख्वाबों की रजाई में
रात हो तेरी मेरी


झिल मिल तारों सी, ऑंखें तेरी
खारे खारे पानी की, झीलें भरे
हरदम यूँ ही तू, हँसती रहे
हर पल है दिल में
ख्वाहिशें यहीं
ख़ामोशी की लोरियाँ
सुन तो रात सो गई
बिन कहे बिन सुने
बात हो तेरी मेरी

साँवली सी रात हो,ख़ामोशी का साथ हो
बिन कहे, बिन सुने,बात हो तेरी मेरी

बर्फी के टुकड़े सा,चन्दा देखो आधा है
धीरे धीरे चखना ज़रा.. हूँ ..हँसने रुलाने का
आधा पौना वादा है, कनखी से तकना ज़रा
ये जो लमहे हैं,लमहों की बहती नदी में
हाँ भीग लूँ हाँ भीग लूँ
ये जो आँखे हैं
आँखों की गुमसुम ज़ुबाँ को
मै सीख लूँ हाँ सीख लूँ
अनकही सी गुफ्तगू, अनसुनी सी जुस्तजू
बिन कहे, बिन सुने, अपनी बात हो गई
साँवली सी रात हो....
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7 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on फ़रवरी 14, 2013 ने कहा…

बहुत ही सुन्दर गीत..

Anu Garg on फ़रवरी 14, 2013 ने कहा…

beautiful song !

Kusum Kushwaha on फ़रवरी 14, 2013 ने कहा…

thanks for beautiful song manish ji,

Manish Kumar on फ़रवरी 14, 2013 ने कहा…

प्रवीण, अनु व कुसुम गीत को पसंद करने के लिए शु्क्रिया। प्रेम की भावना से ओतप्रोत ये गीत मेरे हिसाब से पिछले साल के सबसे प्यारे रोमांटिक गीतों में से है।

Mrityunjay Kumar Rai on फ़रवरी 16, 2013 ने कहा…

प्यार को बयाँ करता गीत

Manish Kumar on मार्च 05, 2013 ने कहा…

बिल्कुल मृत्युंजय !

Ankit on मार्च 08, 2013 ने कहा…

इस पोस्ट को ठीक उसी दिन पढ़ लिया था जिस दिन ये पोस्ट हुई थी लेकिन टिप्पणी नहीं कर पाया था। यह तो मैं जानता ही था कि हर बार की तरह आप 14 फरवरी को एक प्रेम गीत रखते हैं लेकिन इस दफा कौन सा होगा उसकी उत्सुकता अलग थी। लेकिन दो पायदानों की छलांग वाकई अच्छी थी।

स्वानंद अपनी कलम से फिर एक जादू जगा देते हैं, गीत के बोलों के अलावा इस फिल्म में प्रीतम की धुनों में भी ताजगी लगी और इस वीडिओ का फिल्मांकन भी जबरदस्त है। साथ में आपको भी बधाई, आपका विश्लेषण गज़ब का है।

 

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