बुधवार, फ़रवरी 20, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 7 : इत्ती सी हँसी, इत्ती सी ख़ुशी, इत्ता सा टुकड़ा चाँद का..

अच्छा जरा बताइए तो हिंदी फिल्मों में दो प्रेम के मारों को अपने नए नवेले ख़्वाबों का घर बनाते आपने कितनी बार सुना और गुना है। अपने हमसफ़र के साथ नयी ज़िदगी अपने नए घोंसले में शुरु करने का ख़्याल इतना प्यारा है कि गीतकारों ने अलग अलग रंगों में इस जज़्बे को हमारे साथ बाँटा है। 

आज जब आँखें मूँद उन गीतों को याद करने की कोशिश कर रहा हूँ तो सबसे पहले फिल्म घरौंदा में गुलज़ार का लिखा वो गीत याद आ रहा है दो दीवाने शहर में रात को और दोपहर में, आबोदाना ढूँढते हैं इक आशियाना ढूँढते हैं.. नए नीड़ की कल्पनाओं को भूपे्द्र की आवाज़ के पंख मिल गए थे उस गीत को। सो आज भी वो नग्मा हृदय के पास ही फड़फड़ाता रहता है। तनिक पीछे चलूँ तो फिल्म नौकरी के लिए किशोर दा का गाया वो नग्मा छोटा सा घर होगा बादलों की छाँव में, आशा दीवाने मन में बाँसुरी बजाए याद आता है जिसे रेडिओ पर हम बारहा सुनते थे। और हाँ जग्गू दा का वो नग्मा तो छूट ही रहा था जिसे उन्होंने चित्रा जी के साथ फिल्म साथ साथ में गाया था ये तेरा घर वो मेरा घर किसी को देखना हो गर तो पहले आ के माँग ले तेरी नज़र मेरी नज़र। कितने प्यारे गीत थे ये सब जो पर्दे के चरित्रों के साथ हमें भी कुछ पल के लिए ही सही उन्हीं ख़्वाबों में गोते लगाने का मौका दे देते थे।
 
आप तो जानते ही हैं कि किशोर दा, गुलज़ार और जगजीत सिंह मुझे कितने प्रिय रहे हैं शायद यही वज़ह है कि इनसे जुड़े गीत मेरे ज़ेहन में पहले आए। वैसे आप भी बताइएगा कि इस ख्याल से जुड़ा कौन सा गीत आपके मन में पहले आता है।


तो जब तक आप सोचें मैं आपको एक ऐसे ही भावों को लिए वार्षिक संगीतमाला की पॉयदान संख्या सात के गीत से मिलवा देता हूँ जिसे लिखा है स्वानंद किरकिरे ने, धुन बनाई संगीतलकार प्रीतम ने और जिसे अपने मधुर स्वर से सँवारा श्रेया घोषाल और निखिल पॉल जार्ज की जोड़ी ने। जी हाँ ये गीत है फिल्म बर्फी का जिसमें थोड़ी हँसी, थोड़ी खुशी और थोड़े ख्वाबों के मिश्रण से चाँद जैसे खूबसूरत आशिये का निर्माण कर रहे हैं। कहना ना होगा कि अब जब भी तिनकों से आशियाँ बनाने की बात आएगी ये गीत ऊपर की सूची का हिस्सा होगा।

गीत  एकार्डियन की शानदार प्रील्यूड से शुरु होता है। प्रीतम का संगीत संयोजन पश्चिम यूरोपीय संगीत से निकट पर लाजवाब है। श्रेया की आवाज़ में ये गीत इतना प्यारा बन पड़ा है कि आप इसे घंटों लगातार सुन सकते हैं। निखिल पॉल जार्ज जिनके बारे में पहले ही आपको बता चुका हूँ  अंतरों में श्रेया के पूरक का काम बखूबी करते हैं। जिस तरह श्रेया ने इस गीत को निभाया है, युगल गीत होने के बाद भी ये श्रेया का हो के रह गया है। तो चलिए थोड़ा सा हम सब भी झूम लें इस ख़ुशनुमा गीत के साथ...

इत्ती सी हँसी
इत्ती सी ख़ुशी
इत्ता सा टुकड़ा चाँद का
ख़्वाबों के, तिनकों से
चल बनाएँ आशियाँ

दबे दबे पाँव से
आये हौले हौले ज़िन्दगी
होंठों पे ऊँगली चढ़ा के
हम ताले लगा के चल
गुमसुम तराने चुपके-चुपके गायें
आधी-आधी बाँट लें
आजा दिल की ये ज़मीं
थोड़ा सा तेरा सा होगा
थोड़ा मेरा भी होगा
अपना ये आशियाँ

ना हो चार दीवारें
फिर भी झरोखें खुले
बादलों के हो परदे
शाखें हरी, पंखा झले
ना हो कोई तकरारें
अरे मस्ती, ठहाके चले
प्यार के सिक्कों से
महीने का खर्चा चले
दबे दबे पाँव से...
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14 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on फ़रवरी 20, 2013 ने कहा…

यह गीत मन को छू गया था..

Ashutosh Gupta on फ़रवरी 20, 2013 ने कहा…

देखो मैंने देखा है इक सपना- लव स्टोरी

दो पंक्षी दो तिनके लेके चले हैं कहाँ.. ये बनाएंगे इक आशियाँ

धर्मेंद्र राखी अभिनीत जीवन मृत्यु में भी शायद ऐसा एक गाना है पर याद नहीं आ रहा

Manish Kumar on फ़रवरी 20, 2013 ने कहा…

देखो मैंने देखा है इक सपना- लव स्टोरी
अरे हाँ !कुमार गौरव और विजयेता पंडित के साथ तो मैंने भी देखा था ये सपना सिनेमा हॉल में :)

दो पंक्षी दो तिनके लेके चले हैं कहाँ.. ये बनाएंगे इक आशियाँ
ये तो और भी प्यारा गीत याद दिलाया आपने !

धर्मेंद्र राखी अभिनीत जीवन मृत्यु में भी शायद ऐसा एक गाना है पर याद नहीं आ रहा
झिलमिल सितारों का आँगन होगा ना..पर उसमें घर का जिक्र सिर्फ एक अंतरे में आता है ।

Abhishek Mishra on फ़रवरी 20, 2013 ने कहा…

डर का "छोटा सा घर..." भी कुछ ऐसा ही गीत था. राजश्री की एक फिल्म में भी कुछ ऐसा ही मिलता-जुलता गाना था "एक थाली में, एक कटोरी में..

Mrityunjay Kumar Rai on फ़रवरी 20, 2013 ने कहा…

"प्यार के सिक्कों से
महीने का खर्चा चले "

अदभुत कल्पना , बेहतरीन गीत, बेहतरीन सुर, बेहतरीन अभिनय और साथ ही बेहतरीन प्रस्तुति

Sadhana Vaid on फ़रवरी 21, 2013 ने कहा…

बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट ! देवानंद, नूतन अभिनीत ' तेरे घर के सामने ' फिल्म में भी एक ऐसा ही खूबसूरत गीत था ----
'इक घर बनाउंगा तेरे घर के सामने'
इस गीत के शब्द और भाव भी कुछ ऐसा ही कहते प्रतीत होते हैं ! साभार !

aparna ने कहा…

jahan pe basera ho savera wahi hai!!film basera

Ninder Atwal on फ़रवरी 26, 2013 ने कहा…

ek chota sa ghar ho rahe dono vaha hum jaha pyar se mile ye dharti aasman.

Hira Panjwani on फ़रवरी 26, 2013 ने कहा…

ek bangla bane nyara...

Pushpa Gupta on फ़रवरी 26, 2013 ने कहा…

thodi si jami thoda asmaa tinko ka bas ek aasiyaa...

Manish Kumar on मार्च 05, 2013 ने कहा…

हाँ मृत्युंजय स्वानंद की कलम का जवाब नहीं..

Manish Kumar on मार्च 05, 2013 ने कहा…

हीरा, पुष्पा जी, निंदर, अपर्णा, साधना जी बड़े प्यारे प्यारे गीतों की याद दिलाई आपने।

Ankit on मार्च 08, 2013 ने कहा…

वैसे तो ये पूरा का पूरा ही गीत कमाल है लेकिन स्वानंद ने गीत के बोलों में जिस तरह से "इत्ती" शब्द का निर्वाह किया है वो दिल जीत लेता है। इस "इत्ती' शब्द में एक निश्चलता, निर्मलता और एक बचपना छुपा है।

Sonroopa Vishal on मार्च 11, 2013 ने कहा…

जब भी इस गीत को सुनती हूँ तो मन एक ऐसा काल्पनिक घरोंदा बना लेता है जहाँ सब कुछ बहुत खूबसूरत है और मासूमियत से लबरेज़ होकर मैं खुद को उसी दुनिया में पाती हूँ ........सच बहुत अच्छा लगता है ऐसा पल भर के लिए भी महसूस करना !

जो लिखा है वोही इस पोस्ट को पढ़ने के बाद महसूस हुआ !

 

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