गुरुवार, फ़रवरी 03, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 16 : तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी...

वार्षिक संगीतमाला की सोलहवीं पॉयदान पर इस साल पहली बार तशरीफ ला रहे हैं जनाब राहत फतेह अली खाँ साहब। राहत ने इस साल की गीतमाला पर कितनी गहरी छाप छोड़ी है वो आप गीतमाला के सफ़र के आख़िर तक पहुँचते पहुँचते देख ही लेंगे। फिल्म पाप के गीत 'लगन लागी तुमसे मन की लगन' से मुंबईया फिल्मों में अपने गीतों का सफ़र शुरु करने वाले राहत आज अपनी बेमिसाल गायिकी के ज़रिए हर संगीतकार की पहली पसंद बन गए हैं। पर इस पसंद की वज़ह क्या है?

दरअसल सूफ़ी गायिकी में महारत रखने वाले राहत ने जब आपनी आवाज़ हिंदी फिल्मों में देनी शुरु की तभी संगीतकारों को समझ आ गया था कि इस सुरीली आवाज़ के ताने बाने में ऐसे गीत रचे जा सकते हैं जो तब तक मौज़ूद गायकों से नहीं गवाए जा सकते थे। आज हर संगीतकार गायिकी में उनकी आवाज़ के कमाल, लंबी पहुँच, ऊँचे सुरों की जबरदस्त पकड़ के हिसाब से गीत तैयार करता है। राहत उन गीतों में अपनी ओर से भी कुछ नवीनता लाते हैं। अलग अलग तरह से गाए एक ही गीत को संगीतकारों को वे भेज देते हैं और संगीतकार फिल्म की स्थितियों के हिसाब से उनमें से एक का चुनाव कर लेते हैं। अगर आपको सांगीतिक समझ रखने वाला इतना गुणी फ़नकार मिल जाए तो फिर आपको क्या चाहिए।

सोलहवीं पॉयदान पर फिल्म Once Upon a Time in Mumbai के गीत को गीतमाला के इस मुकाम तक पहुँचाने में भी राहत की गायिकी का बहुत बड़ा हाथ है। साथ ही संगीतकार प्रीतम की भी तारीफ करने होगी कि उन्होंने इस गीत में राहत की आवाज़ के साथ कोरस का बेहतरीन इस्तेमाल किया है।

पाया मैंने पाया तुम्हें
रब ने मिलाया तुम्हें
होंठों पे सजाया तुम्हें
नग्मे सा गाया तुम्हें
पाया मैंने पाया तुम्हें
सब से छुपाया तुम्हे
सपना बनाया तुम्हें
नींदों में बुलाया तुम्हें

कोरस की तेज रफ्तार और कर्णप्रिय गायिकी बस आपका मूड एकदम से मस्त कर देती है। विज्ञान के असफल विद्यार्थी से लेकर हिंदी कविता में डॉक्टरेट की उपाधि का सफ़र तय करने वाले इरशाद क़ामिल जब गीतकार होंगे तो ही इश्क़ में दिन को सोना और रात को चाँदी में तब्दील होने की सोच तो देखने को मिलेगी ही। राहत के लिए लिखे गए अंतरों में भी उनकी पंक्तियाँ सीधे दिल पर असर करती हैं। सहगायिका के रूप में राहत का साथ दिया है तुलसी कुमार ने। पर नवोदित गायिका के रूप में तुलसी ने भी राहत जैसे मँजे कलाकार के साथ गाते हुए अपना हिस्सा बड़े करीने से निभाया है। हाँ ये जरूर है कि अगर ये हिस्सा श्रेया घोषाल को दिया गया होता तो मुझे इस गीत को सुनने में शायद ज्यादा आनंद आया होता।

वैसे आप में से बहुतों को शायद मालूम ना हो कि तुलसी, टी सीरीज के मालिक स्वर्गीय गुलशन कुमार की सुपुत्री हैं। अपनी गायिकी का सफ़र उन्होंने भजन व भक्ति गीत से शुरु किया था। देखना है कि हिंदी फिल्म संगीत में उनका आगे का सफ़र कैसा रहता है। तो आइए गीत के बोलों के साथ आनंद लें राहत की अद्भुत गायिकी का



तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी
इश्क़ मज़हब, इश्क़ मेरी ज़ात बन गयी

पाया मैंने पाया तुम्हें...

तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी
सपने तेरी चाहतों के
सपने तेरी चाहतों के
सपने तेरी चाहतों के देखती हूँ अब कई
दिन है सोना और चाँदी रात बन गयी

पाया मैंने पाया तुम्हें...

चाहतों का मज़ा फासलों में नहीं
आ छुपा लूँ तुम्हें हौसलों में कहीं
सबसे ऊपर लिखा है तेरे नाम को
ख्वाहिशों से जुड़े सिलसिलों में कहीं

ख्वाहिशें मिलने की तुमसे
ख्वाहिशें मिलने की तुमसे रोज़ होती है नयी
मेरे दिल की जीत मेरी बात बन गयी
हो तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी

पाया मैंने पाया तुम्हें, रब ने मिलाया तुम्हें

ज़िन्दगी बेवफा है ये माना मगर
छोड़ कर राह में जाओगे तुम अगर
छीन लाऊँगा मैं आसमान से तुम्हे
सूना होगा न ये दो दिलों का नगर

रौनके हैं दिल के दर पे
रौनके हैं दिल के दर पे धड़कने हैं सुरमई
मेरी किस्मत भी तुम्हारी साथ बन गयी
हो तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी
इश्क मज़हब, इश्क मेरी ज़ात बन गयी
सपने तेरी चाहतों के...बन गयी
पाया मैंने पाया तुम्हें...


सोलहवी पॉयदान के साथ इस गीतमाला का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव समाप्त हो रहा है। बस इतना कहना चाहूँगा कि इसके ऊपर आने वाले पन्द्रहों गीत किसी ना किसी दृष्टि से विलक्षण है। मुझे यकीन है कि इन पन्द्रह गीतों में हर एक के साथ एक शाम क्या आपका पूरा हफ्ता गुजर सकता है तो बने रहिए गीतमाला के आने वाले इन नगीनों के साथ...

अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...
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8 टिप्पणियाँ:

Rachana. on फ़रवरी 03, 2011 ने कहा…

I love this song!!! unhappy to see it on no. 16! :)

Mrityunjay Kumar Rai on फ़रवरी 03, 2011 ने कहा…

बहुत सुरीला और कर्णप्रिय संगीत है इस गाने का . पर मुझे लगता है ये गाना टॉप टेन में होना चाहिए था . पर आपकी पसंद है सो ठीक है

Manish Kumar on फ़रवरी 03, 2011 ने कहा…

रचना और मृत्युंजय अच्छा लगा जानकर कि आप दोनों के ये गीत बेहद पसंद है। पसंद तो मैं भी इसे करता हूँ पर इसके आगे के पनद्र्ह नग्मे मुझे और अच्छे लगते हैं।

Abhishek Ojha on फ़रवरी 03, 2011 ने कहा…

मैं तो सोच रहा था कि ये बहुत ऊपर आएगा. बहुत अच्छा गाना है. इरशाद क़ामिल और तुलसी कुमार के बारे में भी जान गए. बढ़िया. इरशाद क़ामिल के बारे में ढूंढ़ता हूँ और.

रंजना on फ़रवरी 04, 2011 ने कहा…

वाह....
आनंद आ गया....
सचमुच लाजवाब कर्णप्रिय गीत है...

तुलसी गुलशन कुमार जी की पुत्री हैं,नयी जानकारी है हमारे लिए...

आपके वजह से कितना कुछ जानने को मिलता है हमें...बहुत बहुत आभार...

siddheshwar singh on फ़रवरी 05, 2011 ने कहा…

सचमुच बात बन गई!

Ankit on फ़रवरी 08, 2011 ने कहा…

गुलज़ार साहब के बेजोड़ लफ्ज़, विशाल भरद्वाज का संगीत और राहत अली खान साहब की खनकती आवाज़ निसंदेह इस सफ़र के सरताज होंगे या उसके करीब होंगे (दिल तो बच्चा है जी) के ज़रिये.

१५ वीं पायदान का ये गाना, अपने साथ बहुत नजाकत लिए हुए है. खूबसूरत नगमा

Ankit on फ़रवरी 08, 2011 ने कहा…

गलती से १५ वीं टाइप हो गया जबकि ये १६ वे स्थान पर है.

 

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