शुक्रवार, जनवरी 14, 2011

अहमद फ़राज़ साहब के जन्मदिन पर कुछ पसंदीदा ग़ज़लें : मेरी और फिर उनकी आवाज़ में...

आज अहमद फ़राज़ का जन्मदिन है और मेरा भी, हर साल इस मौके पर उन्हें याद करने का मुझे एक और बहाना मिल जाता है। गोकि मेरी यादों से वो वैसे भी नहीं जाते। पिछली बार उनके जन्मदिन पर मैंने किशोर फ़राज़ की जिंदगी का एक वाक़या आप सबके साथ साझा लिया था। आज इस मौके पर फ़राज़ की उनकी तीन बेहद मशहूर ग़ज़लों को आपके सामने पेश कर रहा हूँ। दो अपनी आवाज़ में और एक खुद फ़राज साहब की गहरी आवाज़ में

तो आइए आज की इस महफिल का आगाज़ करते हैं उनकी किताब जानाँ जानाँ की इस ग़ज़ल से...


बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा
अब ज़हन में नहीं है पर नाम था भला सा

अबरू1 खिंचे खिंचे से आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा

अल्फ़ाज़ थे कि जुगनू आवाज़ के सफ़र में
बन जाये जंगलों में जिस तरह रास्ता सा

ख़्वाबों में ख़्वाब उस के यादों में याद उस की
नींदों में घुल गया हो जैसे कि रतजगा सा

पहले भी लोग आये कितने ही ज़िन्दगी में
वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुदा सा

अगली मुहब्बतों ने वो नामुरादियाँ2 दीं
ताज़ा रफ़ाक़तों3 से दिल था डरा डरा सा

कुछ ये के मुद्दतों से हम भी नहीं थे रोये
कुछ ज़हर में बुझा था अहबाब4 का दिलासा

फिर यूँ हुआ के सावन आँखों में आ बसे थे
फिर यूँ हुआ के जैसे दिल भी था आबला5 सा
अब सच कहें तो यारो हम को ख़बर नहीं थी
बन जायेगा क़यामत इक वाक़या ज़रा सा

तेवर थे बेरुख़ी के अंदाज़ दोस्ती के
वो अजनबी था लेकिन लगता था आश्ना सा

हम दश्त थे के दरिया हम ज़हर थे के अमृत
नाहक़ था ज़ोम6 हम को जब वो नहीं था प्यासा

हम ने भी उस को देखा कल शाम इत्तेफ़ाक़न
अपना भी हाल है अब लोगो फ़राज़ का सा!

1.भृकुटि, 2.असफलता, 3.दोस्ती, 4.दोस्त, 5.छाला 6.घमंड
*******************************************************************************
और उनकी लिखी ये ग़ज़ल है उनके संकलन दर्द आशोब से..

दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों
मर जाइये जो ऐसे में तन्हाइयाँ भी हों

आँखों की सुर्ख़ लहर है मौज-ए-सुपरदगी1
ये क्या ज़रूर है के अब अंगड़ाइयाँ भी हों

हर हुस्न-ए-सादा लौह2 न दिल में उतर सका
कुछ तो मिज़ाज-ए-यार में गहराइयाँ भी हों

दुनिया के तज़करे3 तो तबियत ही ले बुझे
बात उस की हो तो फिर सुख़न आराइयाँ4 भी हों

पहले पहल का इश्क़ अभी याद है "फ़राज़"
दिल ख़ुद ये चाहता है के रुस्वाइयाँ5 भी हों

1.अपने को सौंपने की इच्छा,  2. सादा दिल,  3. किस्से, 4. बात बनाने की कला, 5. बदनामियाँ
*******************************************************************************
और जब आवाज़ भी खुद फ़राज़ की हो तो फिर क्या कहने

दुख फ़साना नहीं के तुझसे कहें
दिल भी माना नहीं के तुझसे कहें

आज तक अपनी बेकली का सबब
ख़ुद भी जाना नहीं के तुझसे कहें

एक तू हर्फ़ आश्ना था मगर
अब ज़माना नहीं के तुझसे कहें

बे-तरह दिल है और तुझसे
दोस्ताना नहीं के तुझसे कहें

क़ासिद ! हम फ़क़ीर लोगों का
एक ठिकाना नहीं के तुझसे कहें

ऐ ख़ुदा दर्द-ए-दिल है बख़्शिश-ए-दोस्त
आब-ओ-दाना नहीं के तुझसे कहें

अब तो अपना भी उस गली में ’फ़राज’
आना जाना नहीं के तुझसे कहें
*******************************************************************************फ़राज़ साहब के अपने पसंदीदा शेर आप सब भी सुनाते चलें तो आज का ये मुबारक दिन और भी मुबारक हो जाएगा।
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13 टिप्पणियाँ:

Neeraj Rohilla on जनवरी 14, 2011 ने कहा…

मनीष भाई,
वाह वाह वाह, क्या बात है, आपका अन्दाज-ए-बयां और उम्दा शायरी, बस के महफ़िल जम गयी।

आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें और ऐसे बढिया पाडकास्ट के लिये जन्मदिन का इन्तजार करना बडी गलत बात है। इसे तो वैसे ही आते रहना चाहिये। काश हमारे पास आपके जैसी आवाज होती तो कसम से झंडे गाड दिये होते :)

नीरज

समयचक्र on जनवरी 14, 2011 ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति.जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें .मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ....

राज भाटिय़ा on जनवरी 14, 2011 ने कहा…

लोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

rashmi ravija on जनवरी 14, 2011 ने कहा…

बहुत ही भाव भरी आवाज़ में फ़राज़ की गज़लें पढ़ी हैं...लुत्फ़ आ गया.
जन्मदिन की अनेको शुभकामनाएँ

Archana Chaoji on जनवरी 14, 2011 ने कहा…

जन्मदिन की बधाई और शुभकामनाएं...
शुक्रिया...गज़ल और आवाज के लिए...

Abhishek Ojha on जनवरी 14, 2011 ने कहा…

जन्मदिन की शुभकामनाएं. शानदार गजलें है. बहुत कुछ आपके यहाँ से ही सीखा है गजलों को अप्रीसियेट करना. वैसे तो गजलों की पसंद मूड डिपेंडेंट भी होती है.

अपूर्व on जनवरी 14, 2011 ने कहा…

वाह, तब तो डबल बधाई है!
आपको जन्मदिन की मुबारकबाद! और जब मौका और महफ़िल दोनो ऐसे अजीम शायर और उनकी पुरखुलूस गज़लों के साथ नुमाया हो तो बाकी खैर-ख्वाहों का दिन भी बन जाता है..और रात का रंग जवाँ होना अभी बाकी है...

Arvind Mishra on जनवरी 15, 2011 ने कहा…

फराज साहब की स्वपसंद शायरी और आपके जन्मदिन की सिनर्जी ,क्या खूब!शुभकामनाएं!

Manisha Dubey ने कहा…

aap dono ko sunkar bahut hi achcha laga.hamari or se bhi kuch ho jaye.................
''Tohmaten tho lagti rahi roz nayi-nayi ham par Faraz.........!!par jo sabse hasin ilzaam tha wo tera hi naam tha...''

Mrityunjay Kumar Rai on जनवरी 16, 2011 ने कहा…

shandar

Mrityunjay Kumar Rai on जनवरी 16, 2011 ने कहा…

Happy Birth day to You

रंजना on जनवरी 19, 2011 ने कहा…

अभी खुद पर और नेट पर इतना गुस्सा आ रहा है कि क्या कहूँ...

यादाश्त मेरी तो सुभानाल्लाह है ही सदा से पर यदि नेट ठीक होता तो ही पोस्ट पढ़कर आपको समय पर शुभकामना दे देती...

खैर देर ही सही...ढेर सारी शुभ की कामना है आपके लिए ...सदा स्वस्थ रहें,प्रसन्न रहे सुखी रहें और सब और खुशियाँ बांटते रहें...

लाजवाब शायरी सुनाई आपने...प्रशंशा को यथोचित शब्द संधान असंभव है...

बस आभार !!!!

शिवा on जनवरी 20, 2011 ने कहा…

शानदार गजलें है

 

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