शनिवार, जनवरी 29, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 पॉयदान संख्या 18:जब इरशाद क़ामिल, प्रीतम और मोहित ने रचा एक बेहद रोमांटिक नग्मा..

दूर से आता आलाप. गिटार की धुन में घुलता सा हुआ और उसमें से निकलती मोहित चौहान की रूमानियत में डूबी आवाज़ ! वार्षिक संगीतमाला की अठारहवीं पॉयदान के मुखड़े को इसी तरह परिभाषित किया जा सकता है। अब अगर मैं ये कहूँ कि इस गीत को मुझे आपको सुनाना नहीं बल्कि इस मीठे से नग्मे की चाशनी आपको पिलानी हो तो क्या आप इस गीत को नहीं पहचान जाएँगे? जी हाँ वार्षिक संगीतमाला 2010 की 18 वीं सीढ़ी पर बैठा है फिल्म Once Upon A Time In Mumbai का गीत। 19 वीं पॉयदान की तरह ही इस पॉयदान पर भी संगीतकार प्रीतम और गीतकार इरशाद क़ामिल की जोड़ी काबिज़ है।

इरशाद क़ामिल और प्रीतम ने इस गीत में मिल कर दिखा दिया है कि जब अर्थपूर्ण भावनात्मक शब्दों को कर्णप्रिय धुनों का सहारा मिल जाए तो गीत में चार चाँद लग जाते हैं। गीत के मुखड़े में इरशाद कहते हैं..

पी लूँ , तेरे नीले नीले नैनों से शबनम
पी लूँ , तेरे गीले गीले होठों की सरगम

तो मन मनचला बन ही जाता है ...गीत के रस को और पीने के लिए

मुखड़े के बाद के कोरस का सूफ़ियाना अंदाज भी दिल को भाता है।

तेरे संग इश्क़ तारी है
तेरे संग इक खुमारी है
तेरे संग चैन भी मुझको
तेरे संग बेक़रारी है

दरअसल एक प्रेमी की मानसिक अवस्था को गीत की ये पंक्तियाँ बखूबी उकेरती हैं।

पिछले साल दिए अपने एक साक्षात्कार में इरशाद क़ामिल ने कहा था कि आजकल के तमाम गीतों के मुखड़े तो ध्यान खींचते हैं पर अंतरों में जान नहीं हो पाने के कारण वो सुनने वालों के दिलों तक नहीं पहुँच पाते। होना ये चाहिए कि जो भावना या विचार मुखड़े के ज़रिए श्रोताओं तक पहुँचा है उस भाव का विस्तार अंतरे में देखने को मिले।

इरशाद क़ामिल ने इस गीत में भी यही करना चाहा है। इरशाद, प्रेमिका के आंलिगन को एक बहती नदी के सागर में मिल जाने के प्राकृतिक रूपक में ढालते हैं वहीं दूसरे अंतरे में श्रोताओं को प्रेम की पराकाष्ठा पर ले जाते हुए कहते हैं

पी लूँ तेरी धीमी धीमी लहरों की छमछम
पी लूँ तेरी सौंधी सौंधी साँसों को हरदम ...

प्रीतम के इंटरल्यूड्स गीत के असर को और प्रगाढ़ करने में सफल रहे हैं और मोहित की आवाज़ तो ऍसे गीतों के साथ हमेशा से खूब फबती रही है। तो आइए आँखें बंद करें और मन को गीत के साथ भटकने दें। शायद भटकते भटकते आप अपने उन तक पहुँच जाएँ...



ये गीत आप यहाँ भी सुन सकते हैं

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6 टिप्पणियाँ:

रंजना on जनवरी 29, 2011 ने कहा…

आपकी विवेचना...वाह !!!

सचमुच बहुत ही कर्णप्रिय गीत और संगीत है...

पिछले गीत (उन्नीसवें पायदान वाली)का साउंड फ़ाइल मुझे भेज दीजियेगा...प्लीज...

राज भाटिय़ा on जनवरी 29, 2011 ने कहा…

बहुत सुंदर जी

सुशील छौक्कर on जनवरी 29, 2011 ने कहा…

मेरा फेव...

Abhishek Ojha on जनवरी 30, 2011 ने कहा…

इस साल की गीतमाला के अभी तक के गीतों में सबसे अच्छा मुझे यही लगा. बाकी में से कई तो सुने हुए भी नहीं है मेरे. बिलकुल भी अपडेटेड नहीं हूँ पिछले साल के गानों से तो.

कंचन सिंह चौहान on जनवरी 30, 2011 ने कहा…

हँसी मजाक मे किसी मजाक के रिश्ते वाले रिश्तेदार ने ये गीत मुझे डेडिकेट कर के सुनाया था।

सुनने के बाद, तरंत घर आ कर डॉउनलोड किया था ये गीत, पी लूँ के बाद तेरे संग मे जो एकदम से ट्यून चेंज होती, वो बहुत कर्ण प्रिय लगती है।

और हाँ, ये वाली बात कि मुखड़ा तो अच्छा होता है, मग अंतरा उतना ही अच्छा ना होने के कारण हम गीत से अधिक दिन तक नही जुड़े रह पाते, ये मुझे इसी संगीतमाला के पिछले गीत के लिये लगता था। मुखड़ा तो बहुत अच्छा है, मगर अंतरे से दो तीन बार सुनने के बाद वो लगाव नही रह जाता।

अब लग रहा है, कि मेरी पसंद के गीत आने वाले हैं सारे इस संगीतमाला में।

Patali-The-Village on जनवरी 31, 2011 ने कहा…

सचमुच बहुत ही कर्णप्रिय गीत और संगीत है.

 

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