बुधवार, सितंबर 22, 2010

धुन पहेली : पहचानिए जगजीत की गाई मशहूर ग़ज़लों के पहले की इन आठ आरंभिक धुनों को !

जगजीत के इन एलबमों के लोकप्रिय होने में ग़ज़लों में दिए गए संगीत का भी अहम योगदान था। उस वक्त के लिए ये अलग तरह का संगीत था। कुछ ग़ज़लों को तो उनकी आरंभिक धुनों से ही पहचान कर श्रोता ताली बजाने लगते थे। जगजीत ने अपनी संगीतबद्ध ग़ज़लों में संतूर, गिटॉर, सिंथेसाइज़र, वॉयलिन और बाँसुरी का बारहा प्रयोग किया। ग़ज़ल के पंडितों ने ग़ज़ल के विशुद्ध रूप में इसे प्रदूषण की संज्ञा दी पर आम जन ने ग़ज़ल के इस रुप को हाथों हाथ लिया।

हालांकि नब्बे के बाद आए एलबमों में जगजीत का दिए संगीत में बहुत ज्यादा दोहराव होने से उसका प्रभाव वो नहीं रहा। पर उनकी गाई ग़ज़लों की कुछ धुनें आज भी वही जादू जगाती हैं। तो आज आपके सामने मैं ऐसी ही सात धुनों को लेकर आया हूँ। आपको बताना ये है कि ये धुनें किन ग़ज़लों के आरंभ होने के पहले बजाई गई हैं।




1. पहली और आठवी धुन दो अर्थों में एक जैसी हैं। दोनों जगजीत सिंह के अलग अलग एलबमों की पहली ग़ज़लें हैं और दोनों मे ही पीने पिलाने की बात है।





2. भारतीयों का प्रिय शगल है मानते ही नहीं तुरंत चले आते हैं.... जिसे जगजीत व चित्रा ने बड़ी खूबसूरती से उभारा है इस ग़ज़ल में






3. पाकिस्तान के मशहूर शायर की ग़ज़ल है ये... शायर तो रूमानी तबियत के पर थे असल में पहलवान। पर क्या मतला और क्या ग़ज़ल थी बस सिर्फ सुन कर सुभानाल्लाह कहने को जी चाहता था।






4. उफ्फ ! इस ग़ज़ल से रूमानी भला क्या हो सकता है खासकर तब जब आप इसे अँधेरे में सुनें...





5. जगजीत चित्रा की 'तबाही' मचाने वाली एक मशहूर ग़ज़ल...






6. और ये तो उनकी एक ऐसी ट्रेड मार्क धुन है जिसके बारे में कुछ भी कहना मुनासिब नहीं होगा...





7. जगजीत की एक ऐसी ग़ज़ल जिसके शायर का नाम शायद ही किसी को पता हो ! हाँ ये जरूर है कि मोहब्बत में नाकाम लोग अक्सर इस ग़ज़ल का सहारा लेते रहे हैं..






8. पहली और आठवी धुन दो अर्थों में एक जैसी हैं। दोनों जगजीत सिंह के अलग अलग एलबमों की पहली ग़ज़लें हैं और दोनों मे ही पीने पिलाने की बात है।



तो देखें आप जगजीत की ग़ज़लों के कितने बड़े प्रशंसक हैं?


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16 टिप्पणियाँ:

Mrityunjay Kumar Rai on सितंबर 22, 2010 ने कहा…

very indepth knowledge

राज भाटिय़ा on सितंबर 22, 2010 ने कहा…

बहुत सुंदर जी लेकिन हमे तो आधी से भी कम गीतो की पहचान हुयी इस लिये , हम चुप ही रहेगे, धन्यवाद

Manish Kumar on सितंबर 22, 2010 ने कहा…

राज भाई अंदाज लगाइए हो सकता है तुक्का सही बैठे।

Arvind Mishra on सितंबर 22, 2010 ने कहा…

1. jawa hain raat saqiya
2.aaye hain samjhane log
3. apne hoto pe sajana chahta hun
4. charag-e-aafatb gum badi haseen raat thi..
5. jab se hum tabah ho gaye
6. wo kagaj ki kasti
7.ye kaisi mohabbat kahan ke fasane
8. jhoom ke jab rindo ne pila di

upendra on सितंबर 22, 2010 ने कहा…

मनीष जी मेरे हिसाब से ये गजलें निम्न हैं-
1. जवान है रात साकिया शराब ला
2. आये हैं समझाने लोग
3.आपने होठों पे सजाना
4.तेरा चेरा कितना सुहाना लगता है
5. जब से हम तबाह हो गए (ये ग़ज़ल मैंने आपके ब्लॉग पर सुनी व पढ़ी थी तुब से ही इसे पसंद करने लगा था)
6. वो कागज कि कसती
7. ये कैसी मोहबत
8. पता नहीं

suparna ने कहा…

oh my god, i could identify only 2.. and i call myself a fan!:( aaye hain samjhaane log and charaagh-o-aaftaab gum are favourites. (should i have put the numbers too:)

that was really mazedaar post Manish! and a lot of fun, despite the ignorance. thanks :)

Rachana. on सितंबर 23, 2010 ने कहा…

I can't hear any one of them..:(

trying...

रंजू भाटिया on सितंबर 23, 2010 ने कहा…

मुझे तो सुनाई ही नहीं दे रही :(

रंजना on सितंबर 23, 2010 ने कहा…

एक भी नहीं बज रही मनीष जी !!!!

Manish Kumar on सितंबर 23, 2010 ने कहा…

हो सकता है जब आप ने ब्लॉग एक्सेस किया हो डिवशेयर के सर्वर में दिक्कत हो। कल देर रात तक तो लोगों ने जवाब दिया था।

Ashish Shankar on सितंबर 23, 2010 ने कहा…

achcha laga..............dhanyvad

कंचन सिंह चौहान on सितंबर 24, 2010 ने कहा…

कल रात १ बजे तक जाग कर ४ गज़ल पहचान सकी थी आज बस एक और जान सकी हूँ। फिलहाल जो समझ में आया वो यूँ है।

2st जवाँ है रात साकिया
3rd अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ
6th ये दौलत भी ले लो
7th ये कैसी मोहब्बत
8th झूम के जब रिंदो ने पिला दी

कुछ और समझ सकी तो अभी फिर कमेंट दूँगी।

रंजना on सितंबर 24, 2010 ने कहा…

देखकर बताइए कि ये गेस सही हैं या नहीं...
२.. आये हैं,समझाने लोग,हैं कितने दीवाने लोग -जगजीत चित्रा..
३..अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ,आ तुझे मैं गुन्गुनुना चाहता हूँ...जगजीत सिंह.
४...चराग आफताब गुम,बड़ी हसीन रात थी.....जगजीत सिंह..
५. .. कानों ने तो पहचान लिया इसे पर दिमाग में स्पष्ट नहीं हो पा रहा है...
६. ये दौलत भी ले लो,ये शोहरत भी ले लो...जगजीत चित्रा सिंह...
७. इसका भी वही हाल है...कान पहचान रहे हैं,पर दिमाग नहीं...

पहला और आठवां साउंड फ़ाइल खुला नहीं मनीष जी...

वैसे आपसे निवेदन है कि आठों ग़ज़ल सुनवा दीजिये एक बार...
जीवन के आपाधापी में फंस नगण्य सा ही हो गया है जगजीत चित्रा जी को सुनना...नहीं तो पहले यह हाल था कि बिना सुने नींद ही नहीं आती थी...बिना नागा सुना करते थे...

रंजना on सितंबर 24, 2010 ने कहा…

पिछली बार बहुत कोशिशों के बाद भी पहली और आठवीं फ़ाइल नहीं खुल पायी थी...इस बार खुल गयी और मेरे अंदाज़ से पहली ग़ज़ल -
१. जंवा है रात साकिया ,शराब ला शराब ला....जरा सी प्यास तो बुझा...शराब ला शराब ला..- जगजीत सिंह
है...
आठवीं नहीं समझ पायी...

Rahul on सितंबर 27, 2010 ने कहा…

HI MANISH JI I LIKE THIS YAR
1)JAWAN HAI RAT SAQIYA SHARAB LA SHARAB LA.
2)AIYE HAIN SAMJHANE LOG HAIN KITNE DWANE LOG.
3)APNE HOTHON PE SAJANA CHAHTA HUN AA TUJHE MAIN GUN GUNNA CHAHTA HUN .
4)CHIRAG AFTAB GUM BADI HASIN RAT THI.
5)JAB SE HUM TABHAH HO GAYE.
6)YEH DAULAT BHI LE LO
7)YEH KAISI MOHOBAT KAHAN KE FASANE YEH PINE PILANE KE SAB HAIN BAHAANE
8) ?
KITNI SAHI OR KITNI GALAT

(Sep 22 vide orkut)

दिलीप कवठेकर on अक्तूबर 11, 2012 ने कहा…

मज़ा आ गया. पहेली अब अबूज़ नहीं रही, मगर इसी बहाने इस गज़ल महर्षि को याद तो कर लिया. शुक्रिया.

 

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