शनिवार, जून 26, 2010

जगजीत सिंह की ग़ज़लों का सफ़र भाग 2 : एक कमी थी ताज महल में, हमने तेरी तस्वीर लगा दी !

पिछली पोस्ट में मैंने जगजीत साहब की गाई जिस ग़ज़ल का जिक्र किया था वो उनके एलबम 'Visions' से ली गई थी। अपने एलबमों के नाम जगजीत हमेशा अंग्रेजी में ही रखा करते थे। 1976 से ये सिलसिला चला तो 1998 में जावेद अख्तर के साथ किए गए उनके एलबम 'सिलसिला' पे जाकर रुका। इसके बाद उनके एलबम्स के नाम उर्दू में होने लगे। ख़ैर मैं बात कर रहा था 1992 में आए उनके एलबम 'Visions' (विजन्स) की।

टिप्स (tips) द्वारा रिलीज़ इस दोहरे कैसेट एलबम को मैंने कितनी दफ़ा सुना होगा ये याद नहीं। याद रह गई़ तो इसकी ग़ज़लें। सोलह ग़ज़लों के इस गुलदस्ते की शुरुआत जगजीत साहब ने की थी कैफ़ भोपाली के कलाम से। इस ग़ज़ल का संगीत संयोजन अद्भुत था और छोटे बहर की इस बेहतरीन ग़ज़ल के आनंद को दूना कर देता था।


झूम के जब रिंदों ने पिला दी
शेख़ ने चुपके चुपके दुआ दी

एक कमी थी ताज महल में
हमने तेरी तस्वीर लगा दी

आप ने झूठा वादा कर के
आज हमारी उम्र बढ़ा दी

तेरी गली में सज़दे कर के
हमने इबादतगाह बना दी
जगजीत के इस एलबम के पहले भाग में जो ग़ज़लें चुनीं उनमें से ज्यादातर शराब व साकी से जुड़ीं थीं। उनमें से अगर नज़र नज़र से मिलाकर... और ये पीनेवाले..को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकी मन में मस्ती का ऐसा ख़ुमार जगाती थीं की क्या कहें। अब रुस्तम सहगल 'वफ़ा' के लिखे इस मतले पर गौर करें

तेरे निसार साकिया, जितनी पियूँ पिलाऐ जा....
मस्त नज़र का वास्ता, तू मस्त मुझे बनाऐ जा !

वफ़ा ए बदनसीब को बख्शा है तूने दर्द जो
है कोई इसकी भी दवा इतना ज़रा बताए जा


बेख़ुद देहलवी के इन अशआरों की बेख़ुदी के क्या कहने !

ना कह साक़ी बहार आने के दिन हैं
ज़िगर के दाग छिल जाने के दिन हैं


अदा सीखो अदा आने के दिन हैं

अभी तो दूर, शर्माने के दिन हैं

और फिर रही सही कसर आरज़ू लखनवी साहब पूरी कर देते हैं ये कह कर

किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी,
झूम कर आई घटा, टूट के बरसा पानी

कोई मतवाली घटा थी, के जवानी की उमंग,

जी बहा ले गया बरसात का पहला पानी

इन ग़ज़लों के शब्द विन्यास में भले कोई अनूठापन ना हो पर सहजता से कही इन प्यारी बातों को जब जगजीत बेहतरीन मेलोडी के साथ गाते हैं तो गुनगुनाए बिना रहा भी तो नहीं जाता।


पर विज़न्स के पहले हिस्से की दो ग़ज़ले मस्ती के आलम से आपको निकालती हुई वास्तविक दुनिया में ला पटकती हैं। कई बार क्या ऐसा नहीं होता कि सब कुछ जानते बूझते हम उन बातों को दूसरों को समझाने लगते हैं जिनकी विश्वसनीयता पर हमें खुद भी संदेह रहता है। इसीलिए तो निदा फाज़ली साहब कहते हैं

कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है


हमसे पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी
हमने भी इस शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है

वहीं बेखुद 'देहलवी' का ये कलाम भी मन को छूता निकलता है...
र्द-ए-दिल में कमी न हो जाए
दोस्ती दुश्मनी न हो जाए


अपनी खू-ए-वफ़ा से डरता हूँ
आशिकी बंदगी न हो जाए

वैसे भरतपुर राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले बेख़ुद 'देहलवी' का वास्तविक नाम सैयद वहीदुद्दीन अहमद था। वो जाने माने शायर दाग देहलवी के प्रिय शिष्य थे। कहते हैं दाग साहब से जब पूछा गया कि उनकी शायरी का उत्तराधिकारी कौन होगा तो उन्होंने कहा था 'बेखुदें'। उनका इशारा अपने शिष्यों बेखुद 'देहलवी' और बेखुद 'बदायुँनी' की तरफ़ था। बेखुद देहलवी साहब के ग़ज़ल संग्रह गुफ़्तार ए बेख़ुद और सहसवार ए बेख़ुद के नाम से जाने जाते हैं।






अगली पोस्ट में आपको ले चलेंगे इस एलबम के दूसरे हिस्से की तरफ़ जो इतना ही खूबसूरत है...
अगर आपने ये एलबम नहीं सुना तो जरूर सुनें। इसे आप यहाँ से भी खरीद सकते हैं।
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9 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला on जून 26, 2010 ने कहा…

बेहद खूबसूरत प्रस्तुति धन्यवाद्

राज भाटिय़ा on जून 26, 2010 ने कहा…

इस शान दार प्रस्तुति के लिये आप का धन्यवाद

Priyank Jain on जून 27, 2010 ने कहा…

man har kar baithe hain milta nahin koi meet;
sunakar ye madhosh gazal kyun dard jagate ho jagjeet|
Apart from this futile lines, I like the post.

Usha Vinod on जून 27, 2010 ने कहा…

Amazing...I cannot forget as these have become very important chapter of my life :) Nice sharing!

Abhishek Ojha on जून 28, 2010 ने कहा…

कुछ दिनों से ऑफलाइन रहना हुआ और इसी बीच आप पुणे आकर लौट गए ! आपने एक फ़ोन कर दिया होता तो मिलना हो जाता.
खैर... धीरे-धीरे अपठित पोस्ट पढता हूँ.

रंजना on जून 30, 2010 ने कहा…

सुनदर पोस्ट...
आभार की आपने याद करा दिया....घर जाकर सुनती हूँ यह कलेक्शन...

कंचन सिंह चौहान on जुलाई 02, 2010 ने कहा…

एक कमी थी ताज़महल में ये पिंकू की बड़ी फेवरिट गज़ल है। हमने अक्सर उसी के मुँह से सुनी है ये गज़ल।

पोस्ट फिर जानकारी भरी...

Himanshu Pandey on अगस्त 24, 2010 ने कहा…

ये भी क्या एहसान कम है देखिए ना आपका...
जगजीत की गायकी को परत दर परत खोलते जा रहे हैं आप !
यह विश्लेषण ही बहुत मोहक है आपका ! आभार ।

shreyas on मार्च 28, 2013 ने कहा…

Small error - It's izzat (not ijaazat) in Kabhi Kabhi Yun Bhi. Just FYI.

Cheers!

 

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