मंगलवार, जनवरी 13, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 पायदान संख्या 20 : कभी कभी अदिति जिंदगी में..

आज हम प्रवेश कर रहे हैं वार्षिक संगीतमाला २००८ के प्रथम बीस गीतों की फेरहिस्त में। पिछली पोस्ट में आप रूबरू हुए थे गायक जावेद अली से और आज २० वीं पायदान पर जो गीत है उसे आवाज़ दी है नए कलाकार राशिद अली ने !


जाने तू या जाने का के सबसे लोकप्रिय गीत को गाने वाले राशिद को ए. आर. रहमान की खोज कहा जा सकता है। राशिद के परिवार का ताल्लुक यूँ तो उत्तर प्रदेश से है पर वे लंदन में ही पले बढ़े। माँ ग़ज़ल गायिका थी इसलिए ब्रिटेन के जाने माने कलाकारों के पाश्चात्य संगीत के साथ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत से भी उनका परिचय साथ साथ हुआ। स्कूल में जॉज (Jazz) संगीत की ओर उन्मुख हुए। फिर जब वाइलिन और गिटार के बीच अपना पसंदीदा वाद्य यंत्र को चुनने की बारी आई तो उन्होंने गिटार को चुना।

२००२ में पहली बार रहमान से एक कान्सर्ट के दौरान उनकी मुलाकात हुई और फिर २००३ में वे बतौर गिटारिस्ट उनके क़ाफिले के सदस्य बन गए। और जाने तू या जाने ना में कभी कभी अदिति में ना केवल उन्होंने अपनी प्यार अदाएगी से सबका मन मोहा बल्कि अपनी ओर से गिटार के कुछ बीट्स जोड़े। राशिद कहते हैं कि मैंने बॉलीवुड में प्रवेश के बारे में इस तरह नहीं सोचा था। हाँ इतनी तमन्ना जरूर थी कि जब स्टेज पर जाऊँ तो लोग मुझे अपनी आवाज़, अपने गिटार वादन के लिए पहचाने।

और अब जबकि रूठे हुए को मनाता ये गीत सबकी जुबाँ पर है राशिद खुशी महसूस कर सकते हैं कि बहुत जल्द ही वो अपना सपना पूरा कर पाए हैं। तो आइए एक बार फिर सुनते हैं ये गीत राशिद अली की आवाज़ में.....

कभी कभी अदिति जिंदगी में यूँ ही कोई अपना लगता है
कभी कभी अदिति वो बिछड़ जाये तो इक सपना लगता है
ऐसे में कोई कैसे अपने आँसुओ को बहने से रोके
और कैसे कोई सोच ले everything’s gonna be okay

कभी कभी तो लगे जिंदगी में रही ना खुशी और ना मज़ा
कभी कभी तो लगे हर दिन मुश्किल और हर पल एक सज़ा
ऐसे में कोई कैसे मुस्कुराये कैसे हँस दे खुश होके
और कैसे कोई सोच दे everything gonna be okay

सोच ज़रा जाने जाँ तुझको हम कितना चाहते हैं
रोते है हम भी अगर तेरी आँखों में आँसू आते हैं
गान तो आता नहीं है मगर फिर भी हम गाते हैं
के अदिति माना कभी कभी सारे जहाँ में अँधेरा होता है
लेकिन रात के बाद ही तो सवेरा होता है

कभी कभी अदिति जिंदगी में यूँ ही कोई अपना लगता है
कभी कभी अदिति वो बिछड़ जाए तो एक सपना लगता है
हे अदिति हँस दे हँस दे हँस दे हँस दे हँस दे हँस दे तू ज़रा
नहीं तो बस थोड़ा थोड़ा थोड़ा थोड़ा थोड़ा थोड़ा मुस्कुरा

तू खुश है तो लगे के जहाँ में छाई है खुशी
सूरज निकले बादलों से और बाटें जिंदगी
सुन तो ज़रा मदहोश हवा तुझसे कहने लगी
के अदिति वो जो बिछड़ते है एक न एक दिन फिर मिल जाते हैं
अदिति जाने तू या जाने न फूल फिर खिल जाते हैं

कभी कभी अदिति .................थोड़ा मुस्कुरा

मुझे लगता है कि ये साल का सबसे खुशनुमा गीत है जो किसी के भी उदास मन को प्रफुल्लित कर दे। आप क्या सोचते हैं इस गीत के बारे में

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8 टिप्पणियाँ:

कंचन सिंह चौहान on जनवरी 13, 2009 ने कहा…

ye geet bhi apane sadharan kintu prabhavi shabdo ke karan karnpriya lagta hai...!

नितिन | Nitin Vyas on जनवरी 13, 2009 ने कहा…

सुन्दर गीत है, एकदम से दिल-दिमाग में छा जाता है

Yunus Khan on जनवरी 13, 2009 ने कहा…

रहमान को इसलिए सलाम है कि वो एकदम जवान गीत देते हैं । और खुद को रिवाइव करते रहते हैं ।

Abhishek Ojha on जनवरी 13, 2009 ने कहा…

सच में खुशनुमा गीत है !

बेनामी ने कहा…

wah!! kai dino baad apake page par aai aur mera behad pasandida geet !! shukriya .:)

Udan Tashtari on जनवरी 14, 2009 ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत लिया है इस पायदान के लिए बिल्कुल मुफीद.

Amit Kumar Yadav on जनवरी 14, 2009 ने कहा…

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

Dev on जनवरी 15, 2009 ने कहा…

आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

 

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