मंगलवार, अप्रैल 15, 2008

मौला मेरे ले ले मेरी जान...सुनिए सलीम मर्चेंट का गाया ये संवेदनशील नग्मा..

आज एक गीत कुछ सूफियाना अंदाज का जिसे मैंने पिछले RMIM पुरस्कारों के दौरान नामित गीतों में होने की वज़ह से सुना था और एक बार सुनकर ही लगा था कि इसमें कुछ अलग बात है। इस गीत को फिल्म के कहानी के परिदृश्य में देखा जाए तो गीत की भावनाओं को समझने में आसानी होती है। गीत के पीछे का प्रसंग कुछ इस तरह से है ...

अपने देश के प्रति सब कुछ उत्सर्ग के के भी जब पूरी टीम की गलती का ठीकरा एक गोलकीपर पर फूटता है और अलग मज़हब होने की वजह से उसे जगह जगह गद्दार की उपाधि से विभूषित किया जाता है तो वो सोचने पर मजबूर हो जाता है। उसे लगता है कि भाई शुरु से तो मैं इसी मिट्टी का रहा, यहीं खेला, पला बढ़ा, । खुशियों के पल साथ साथ बाँटे। इसकी आन को अपना माना तो फिर आज ये सब क्यूँ सुनना पड़ा मुझे? क्या गलती हुई मुझसे। इस जलालत से तो मौत ही बेहतर थी...

इस गीत को गाया सलीम मर्चेंट के साथ कृष्णा ने । सलीम और उनके भाई सुलेमान चक दे इंडिया फिल्म से लिए गए गीत के संगीतकार हैं। सलीम सुलेमान नए संगीतकारों की जमात में एक उभरता नाम हैं। पिछले साल फिल्म डोर के लिए इनका लिखा नग्मा ये हौसला कैसे झुके काफी सराहा गया था।

इस गीत को लिखा है, जयदीप साहनी ने जो गीतकार से ज्यादा एक पटकथा लेखक की हैसियत से ज्यादा जाने जाते हैं। 'खोसला का घोसला' से लेकर 'चक दे इंडिया' में अपने पटकथा लेखन से इस कम्प्यूटर इंजीनियर ने बहुत वाहावाही लूटी है। पर इस दिल को छूने वाले गीत में उन्होंने दिखा दिया की उनकी प्रतिभा बहुआयामी है.

तो आईए सुनें ये मर्मस्पर्शी गीत...

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तीजा तेरा रंग था मैं तो
जीया तेरे ढंग से मैं तो
तू ही था मौला तू ही आन
मौला मेरे ले ले मेरी जान

तेरे संग खेली होली
तेरे संग की दीवाली
तेरे आँगनों की छाया
तेरे संग सावन आया
फेर ले तू चाहें नज़रें, चाहे चुरा ले
अब के तू आएगा रे शर्त लगा ले
तीजा तेरा रंग था मैं तो
जीया तेरे ढंग से मैं तो
तू ही था मौला तू ही आन
मौला मेरे ले ले मेरी जान

मिट्टी मेरी भी तू ही
वही मेरे घी और चूरी
वही रांझे मेरे वही हीर
वही सेवईयाँ वही खीर
तुझसे ही रूठना रे मुझे ही मनाना
तेरा मेरा नाता कोई दूजा ना जाना

तीजा तेरा रंग था मैं तो
जीया तेरे ढंग से मैं तो
तू ही था मौला तू ही आन
मौला मेरे ले ले मेरी जान
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8 टिप्पणियाँ:

Manas Path on अप्रैल 15, 2008 ने कहा…

सुफ़ियाना गीतों में दर्शन बेजोड़ होता है.

दीपक on अप्रैल 15, 2008 ने कहा…

मजेदार रही यह शाम अरे अरे माफ़ किजिये शाम तो गयी पर हाँ रात जरूर खुश्नुमा हो गयी ""

डॉ .अनुराग on अप्रैल 16, 2008 ने कहा…

meri gadi me ye geet mere banaye gaye cd me shamil hai ,maje ki bat hai pichle do dino se cliic aate jate ise hi sun raha tha....aaj aapne sunvaya....to ......

Anita kumar on अप्रैल 16, 2008 ने कहा…

गीत तो फ़िल्म में सुना था और दिल को भी छुआ था पर पूरे बोल आप के ब्लोग से ही पढ़े , शुक्रिया, सच में गीत बहुत खूबसुरत है

कंचन सिंह चौहान on अप्रैल 17, 2008 ने कहा…

जब चक दे इण्डिया देखते समय पहली बार सुना ये गीत तो ढेरों संवेदनाएं आ गईं इस गीत को सुन के, इस गीत से संचंफॆकर अन्य जानकारियाँ देने एवं सुनवाने का धन्यवाद। अनीता दी की ही तरह हमने भी पूरे बोल आप द्वारा ही जाने।

Manish Kumar on अप्रैल 17, 2008 ने कहा…

गीत पसंद करने का आप सब का शुक्रिया !

Charu on अप्रैल 26, 2008 ने कहा…

is geet ko aapki geetmala me na pakar mujhe bahut ashcharya hua tha.
ab is post ko dekhkar bahut prasannta hui. ye gaana ek nirdosh vyakti ki dosharopan ke baad ki manastithi ko sahi tareeke se abhivyakt karta hai.

सुशील छौक्कर on फ़रवरी 23, 2010 ने कहा…

इस गीत से एक अलग ही जुडाव है मेरा, ना जाने क्यों? और जब भी उदास होता हूँ तो यूटयूब पर चला जाता हूँ इस गाने को सुनने के लिए। और बार बार सुनता हूँ। और आज भी कई बार सुनूँगा। कई बार तो इतना डूब जाता हूँ इस गाने में कि आँखे बोलने लगती है.....। हो सके तो इस गाने को भेज देना प्लीज। वक्त वेवक्त जब नेट ना हो और सुनने का मन हो तो सुन सकूँ।

 

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