मंगलवार, मार्च 18, 2008

आइए झांके हृदय गवाक्ष के अंदर और मिलें कंचन सिंह चौहान से..

आज आपको मिलवाते हैं हमारी साथी महिला चिट्ठाकार कंचन सिंह चौहान से जिनसे २९ फरवरी को मेरी मुलाकात लखनऊ में हुई थी। कंचन चौहान से पहला संपर्क आरकुट के गोपाल दास नीरज समूह पर हुआ था।वहाँ से मैं उनकी प्रोफाइल पर गया था तो ये पंक्तियाँ पढ़कर मंत्रमुग्ध हो गया था


नित्य समय की आग में जलना,
नित्य सिद्ध सच्चा होना है,
माँ ने दिया नाम जब कंचन,
मुझको और खरा होना है 

मुझे जीवन में अक्सर ऍसे लोग अच्छे लगे हैं जिनमें अपने हुनर के प्रति आत्मविश्वास हो और अपने इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए धैर्य और परिश्रम से परहेज ना हो। ऍसा इसलिए भी है कि ऍसे लोगों की संगत आपको भी उत्प्रेरित करती है अपनी कर्मठता बनाए रखने की। और इन पंक्तियों के पीछे मुझे ऍसे ही इंसान की हल्की छाया जरूर दिखी।

उनकी चिट्ठे की प्रोफाइल पर आज जो तसवीर है ,वही उस वक्त आरकुट पर थी पर ये बात मैंने कभी गौर नहीं की कि चित्र में वो व्हील चेयर पर बैठीं हैं। जब मुझे ये बात कंचन से पता चली कि वो बचपन से पोलियो की समस्या से पीड़ित हैं तो मैं स्तब्ध रह गया। ये कंचन की जीवटता का ही कमाल है कि बिना व्हील चेयर के ये लड़की स्कूल और कॉलेज की सीढ़ियां घिसट घिसट कर चढ़ती रही, गिरती रही, दबती रही फिर भी अपनी हताशा पर काबू पाकर इन विषम परिस्थितियों को कभी पढ़ाई के बीच नहीं आने दिया।

कंचन के पिता की ख्वाहिश थी की बिटिया कॉलेज में अंग्रेजी विषय जरूर चुने। पिता तो नहीं रहे पर उनकी इच्छा को पूर्ण करने के लिए कंचन ने पहले अंग्रेजी में परास्नातक किया और फिर अपनी इच्छा के विषय हिंदी में भी। कंचन, फिलहाल एक सरकारी महकमे में हिंदी अनुवादक के पद पर कार्यरत हैं। पर कृतिदेव में अनेकों पांडुलिपियों को लिखने के बाद भी ये इस बात से अनिभिज्ञ थीं कि यूनीकोड भी कोई चीज होती है। इन्हें मैंने परिचर्चा में जाने की सलाह दी कि वहाँ बहुत सारे लोग आपको यूनीकोड में टाइप करने के औजार और गुर सिखा देंगे। पर उनकी यूनीकोड सीखने की लगन और उनकी कविताओं की गुणवत्ता को देखने के बाद मैंने मन ही मन निश्चय किया कि कंचन की प्रतिभा को सही रूप में ज्यादा लोगों तक एक चिट्ठे के माध्यम से पहुँचाया जा सकता है। कंचन परिचर्चा में तो नियमित रूप से कविता लिखती रहीं पर अपना चिट्ठा बनाने की जब भी बात होती उनकी स्वास्थ समस्याएँ आड़े आ जातीं। खैर , वो अस्वस्थता के दौर से बाहर निकलीं और फिर हृदय गवाक्ष अस्तित्व में आया। इतने कम समय में भी चिट्ठाकारों और पाठकों का जो प्रेम उन्हें मिला है वो उनकी लेखन प्रतिभा का प्रमाण है।

ऍसे में लखनऊ एक शादी में जाने का कार्यक्रम बना तो मैंने कंचन को अपने कार्यक्रम की सूचना दी। जब मैंने ये पाया कि इनके घर से मेरे रहने के स्थान की दूरी २० किमी है तो मैंने कहा कि आपको वहाँ तक पहुँचने या मुझे लिवा लाने में समस्या आएगी। अब बोलने में कंचन कम उस्ताद नहीं है, तुरंत कह बैठीं

"..आप चिंता क्यों करते हैं? आपको बस निर्दिष्ट स्थान तक पहुँचना है, वहाँ से आपको उठवा लिया जाएगा।..."

खैर, मुझे स्टेशन तक पहुँचने को कहा गया। निर्धारित समय पर पहुँच गए। अगला आदेश आया कि अब रानी कलर की कमीज पहने युवक आपको स्टेशन पर रिसीव करेगा। जब बीस पचीस मिनट गुजर गए तो मैंने चहलकदमी करनी शुरु कर दी। इसी बीच दो तीन रानी कलर कमीज वाले नजर भी आए जिनके आमने सामने से मैं दो तीन बार आशा भरी निगाहों से गुजरा पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। जब प्रतीक्षा करते करते ४० - ४५ मिनट गुजर गए तो ख़बर आई कि किन्हीं अपरिहार्य कारणों से आपको लाने वाले दूत को बदल दिया गया है।

थोड़ी ही देर बाद अवधेश मेरे सामने थे। वे मुझे लखनऊ का दर्शन कराते हुए गंतव्य स्थान पर ले गए। हमलोग पहले पहुँच गए थे इसलिए अवधेश से उनके कैरियर संबधित बातचीत हुई। फिर कंचन आईं अपने भांजे विजू के साथ। अगले दो घंटे खालिस गपशप में बीते। कंचन व्यक्तिगत रूप से मुझे मिलनसार और हँसमुख (इसका प्रमाण आप इनके चित्रों को देख कर कर सकते हैं)इंसान लगीं। परिवार के सारे बड़े छोटों की वो चहेती रही हैं। बड़े छोटों में नेह बाँटना इन्हें बखूबी आता है। इस बात से इनकी लिखी ये कविता याद आती है..

तुम अपनी परिभाषा दे लो, वो अपनी परिभाषा दें लें,
मेरे लिये नेह का मतलब केवल नेह हुआ करता है।

वही नेह जो गंगा जल सा सारे कलुष मिटा जाता है,
वही नेह जो आता है तो सारे द्वेष मिटा जाता है।

वही नेह जो देना जाने लेना कहाँ उसे भाता है,
वही नेह जो बिना सिखाए खुद ही त्याग सिखा जाता है।

वही नेह जो बिन दस्तक के चुपके से मन में आता है,
वही नेह जो साधारण नर में देवत्व जगा जाता है।


पर बालकों ने ये भी बताया कि घर में इनकी निरंकुश सत्ता चलती है:)। जिद पर आ जाएँ तो बात वात करना बंद कर दें तब इन्हें मनाने के कई पुराने नुस्खे अपनाने पड़ते हैं, जिसमें अक्सर कामयाबी मिल ही जाती है।
कंचन संयुक्त परिवार में पली बढ़ी हैं और समाज में नारी के किरदार की उनकी एक सोच है जिनके कुछ बिंदुओं पर मेरी उनसे कई बार बहस हो चुकी है। वही चर्चा यहाँ भी खिंच गई कि क्या लड़के और लड़कियों के लालन-पालन में हम आज भी क्या एक मापदंड को अपनाते हैं? सबने अपने अपने अनुभव बाँटे। फिर विजू ने बताया कि उसे जोधा अकबर में क्या अच्छा लगा। साहित्य और संगीत में कंचन की खासी अभिरुचि रही है और मैंने सोचा था कुछ उनकी पसंदीदा किताबों के बारे में भी उनकी राय लूँगा पर घड़ी की सुईयाँ तेजी से आगे बढ़ रहीं थीं। १.३० बज रहे थे और मुझे वापसी की ट्रेन पकड़नी थी इसलिए कंचन और विजू से विदा लेकर मैं अवधेश के साथ वापस स्टेशन की ओर चल पड़ा।

अब देखिए इस मौके पर ली गई कुछ तसवीरें और हाँ कंचन जी की शिकायत है कि मेरे कैमरे ने उन्हें 20% extra dark दिखाया है। मैंने उनकी शिकायत सोनी कंपनी तक पहुँचा दी है पर फिलहाल तो मैं यहीं कह सकता हूँ कि आप लोग चित्र देखते समय इस हिसाब से आवश्यक फिल्टरेशन कर ही उनकी कोई छवि मन में बनाइएगा  :)।





ये हम तीनों के व्यक्तित्व का कमाल था कि कंचन चित्र लेते समय अंदर से बाहर तक हिल गईं

वैसे इस मुलाकात की कुछ और तसवीरें आप यहाँ भी देख सकते हैं
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20 टिप्पणियाँ:

कंचन सिंह चौहान on मार्च 18, 2008 ने कहा…

उफ्फ्फ् ..! शुरुआत में तो आँखें नम होने को आ गई, अपने ही बारे में अपनी ही बताई हुई चीजों को सुनना लगा जैसे कोई अलग सी कहानी सुन रही हूँ, लेकिन खैर..बाद में तो आपने सारी कसर निकाल ही ली..और हाँ कमीज़ का रंग रानी था, जिसके विषय में मुझे जवाब भी मिला था कि राजा और रानी भी रंग होते हैं क्या..?

हाँ इस पोस्ट को पढ़ने वाले सभी पाठकों को सूचित किया जाता है कि अग्यात कारणोंवश इस चिट्ठे पर लगाया गया मेरे चित्र को अधिक साँवला दिखाने की कुचेष्टा की गई है....कृपया मेरे ब्लॉग पर लगे धुँधले चित्रों को ही मानकीकृत मानें :)

SahityaShilpi on मार्च 18, 2008 ने कहा…

चलिये आप की इस पोस्ट के माध्यम से हम भी कंचन जी से मिल लिये. उनके जीवट व प्रेम से परिपूर्ण व्यक्तित्व के परिचय के लिये शुक्रिया. और नीरज जी तो मेरे भी पसंदीदा कवियों में से हैं. मैं अपने चिट्ठे पर ज़ल्द ही उनके कुछ गीत डालने की सोच भी रहा था.
और हाँ ’उठवा’ लिये जाने के बाद भी आप सही सलामत चिट्ठा लिख रहे हैं, इसके लिये मुबारकबाद :)

- अजय यादव
http://merekavimitra.blogspot.com/
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://intermittent-thoughts.blogspot.com/

नीरज गोस्वामी on मार्च 18, 2008 ने कहा…

नमन करता हूँ कंचन जी के साहस और सीखने की अदम्य इच्छा शक्ति को. इश्वर उन्हें हमेशा खुश रखे.
नीरज

Sanjeet Tripathi on मार्च 18, 2008 ने कहा…

सलाम कंचन जी को!!
उपरवाला सदा खुशियां दे उन्हें!
शुक्रिया आपका

Yunus Khan on मार्च 18, 2008 ने कहा…

कंचन का संघर्ष जाना आज । कभी लिखा था अपन ने । संघर्षों की ज्‍वाला में तपकर कुंदन बनना होगा । आज उसे बदल देते हैं कंचन के लिए ।
संघर्षों की ज्‍वाला में तपकर कंचन बनना होगा ।
शुभकामनाएं और बधाईयां एक शानदार ब्‍लॉगर मिलन ।

अनिल रघुराज on मार्च 18, 2008 ने कहा…

कंचन जी की जिजीविसा को सलाम।

mamta on मार्च 18, 2008 ने कहा…

मनीष जी कंचन जी का पूर्ण परिचय कराने का शुक्रिया।
वैसे कंचन जी ने अपने ब्लॉग पर भी इस मुलाकात की चर्चा की थी और आज आपने उस मुलाकात का जिक्र करके बहुत अच्छा किया है।

Udan Tashtari on मार्च 18, 2008 ने कहा…

वाह, बहुत ही उम्दा परिचय दिया अपने अंदाज में. कंचन को सलाम. ऐसे ही उत्साहित लिखते रहिये..कंचन जी.

आभार मनीष भाई.

अमिताभ मीत on मार्च 18, 2008 ने कहा…

कंचन की लेखन प्रतिभा और कविताओं की उस की परख और पसंद का ज्ञान तो अब तक हो गया था मुझे. लेकिन आज के इस परिचय के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मनीष.
आज ये पोस्ट पढ़ कर "जिगर" मुरादाबादी का एक शेर याद आ गया :
(इस शेर में मैं ने दो शब्दों को बदल दिया है)
"दरिया की ज़िंदगी पर सदके़ हज़ार जानें
मुझ को नहीं गवारा साहिल की ज़द में रहना"
कंचन को सलाम. कितना कुछ सिखा गया तुम्हारा ये छोटा सा परिचय. ईश्वर तुम्हें हर खुशी दे.
शुक्रिया मनीष.

सुजाता on मार्च 18, 2008 ने कहा…

धन्यवाद कंचन जी से परिचय करवाने के लिये । कंचन के हौसले को सलाम !!

Manish Kumar on मार्च 18, 2008 ने कहा…

मनीष , कंचन और आपकी मुलाकात के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा. ह्रदय गवाक्ष में भी पढ़ चुके हैं. वैसे साँवले सलोने रंग का अपना हीआकर्षण है. आप दोनों को होली की मुबारक. मीनाक्षी
( आप इसे टिप्पणी के रूप में पोस्ट में डाल दें. कई दिनों से ब्लॉग स्पॉट के ब्लॉग़ज़ टिप्पणी के लिए नहीं खुल रहे.)

ghughutibasuti on मार्च 19, 2008 ने कहा…

कंचन जी से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद । थोड़ा बहुत तो मैं पहले से उनको जानती थी । विस्तार से उनके बारे में पढ़कर अच्छा लगा । मेरी ओर से उन्हें ढेरों शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती

Anita kumar on मार्च 19, 2008 ने कहा…

कंचन जी क बारे में जान कर अच्छा लगा, उनकी हिम्मत को मेरा भी सलाम, अब अगली मुलाकात किस के साथ है>

कंचन जी आप गोरी या काली हर रुप में अच्छी लग रही है।

Unknown on मार्च 22, 2008 ने कहा…

बहुत ही भले तरीके से आपने कंचन जी के विषय में बताया - उनका ब्लॉग पढ़ा और आपके प्रेरक रोल का भी ज्ञान हुआ - यह और बहुत ही भली बात लगी - अभी होली की शुभ कामनाएँ लें सभी स्वजनों के साथ - सस्नेह - मनीष

अनूप शुक्ल on मार्च 23, 2008 ने कहा…

कुछ दिन पहले इस मुलाकात का विवरण पढ़ा था। आज दुबारा पढ़ा। बहुत अच्छा लगा। कंचन के हौसले की तारीफ़ करता हूं। रंग की चिंता वे न करें। कंचन की चमक अपने आप में बेहतरीन है। मनीष का शुक्रिया कि कंचन के बारे में जानकारी दी।

अजित वडनेरकर on मार्च 24, 2008 ने कहा…

कल अनिता जी ने इस पोस्ट के बारे में बताया था , आज देख पाया हूं। कंचन जी के हौसले को सलाम करता हूं। ईश्वर उनकी झोली में खूब सारी खुशिया डाले। आपने बुहत अच्छा काम किया है।

Gwalior Times ग्वालियर टाइम्स on दिसंबर 03, 2008 ने कहा…

कंचन जी की साधना को प्रणाम । रंग तो सांवला ही सलोना है । वही श्रेष्‍ठ है । राजपूतों में सांवले रंग की खास अहमियत है भाई । भगवान श्री कृष्‍ण सांवले सलौने होकर भी विश्‍व में पूज्‍य व मान्‍य होकर सौन्‍दर्य प्रतीक कामदेव कहे जाते हैं ।

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

siddheshwar singh on जनवरी 09, 2009 ने कहा…

मिल लिए साहब दो अच्छे इंसानों से ! खूब मिले!!

सुशील छौक्कर on फ़रवरी 28, 2009 ने कहा…

ये तो मुझे आज ही पता चला तो सोच में पड़ गया कि कई बार उनके ब्लोग पर गया था पर कभी ध्यान नही दिया। खैर उनकी इच्छा शक्ति और मेहनत को मेरा सलाम। और उनके भविष्य के लिए ढेरो शुभकामनाएं।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on फ़रवरी 28, 2009 ने कहा…

मनीष भाई, कँचन बिटिया से मिलकर हमेँ भी बेहद खुशी हुई ~~
आज ही आपकी सभी ब्लोगर मिलन पोस्ट पढ रही हूँ और यात्रा हो या सँगीत या व्यक्ति विशेष से मुलाकात
की चर्चा आप का लेखन अत्यँत अँतरँग व मनमोहक है ..बहुत खूब लिखते हैँ आप !!

 

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