सोमवार, फ़रवरी 05, 2007

पायदान # 8: गुरु गुलजार की बेसुवादी रतिया में रहमान चिन्मयी की बतिया !

बीते ना बिताई रैना, बिरहा की जाई रैना
भीगी हुई अखियों ने लाख बुझाई रैना....
....चाँद की बिन्दी वाली, बिन्दी वाली रतियाँ
जागी हुई अखियों में रात ना आई रैना


रात का ये तनहा सफर गुलजार के लिए नया नहीं । परिचय के इस गीत की तरह कई बार इन मनोभावों को उभारा है उन्होंने ।
अब वैसे भी मन का मीत ही साथ ना हो तो शीतल, सलोनी , चाँदनी रात में इश्क का तड़का लगाएगा कौन ! फिर तो वो रात भी फीकी-फीकी बेस्वादी ही होगी ना !
इसी मुखड़े को सजाया है अपनी धुन से संगीतकार ए. आर. रहमान ने । और इसे गाया है रहमान के साथ युवा नवोदित गायिका चिन्मयी श्रीपदा ने । चिन्मयी बहुभाषाविद हैं, मनोविज्ञान की छात्रा हैं, बचपन से शास्त्रीय संगीत सीख रही हैं और खुशी की बात ये कि वो हमारी और आपकी तरह एक ब्लॉगर भी हैं । देखिये तो खुद क्या कहती हैं अपने चिट्ठे पर गुरु के गीतों की उनकी अदायगी के बारे में ।

"मुझे बस इतना याद है कि रहमान सर ने कहा कि अपनी आवाज को पूरी तरह बहने दो और गाओ । चाहे ऐसा करने पर तुम्हें ये क्यूँ ना लगे कि तुम अव्वल दर्जे की मूर्ख हो । वैसे तो मन का संकोच ना जाना था ना गया, पर ये जरूर हुआ कि दिमाग में कोई दीपक उस वक्त जरूर जल उठा और उसकी वजह से अपनी कम काबिलियत का अहसास जाता रहा । पर रिकार्डिंग के बाद अपनी गायिकी पर सवाल रह रह कर मन में फिर से उठने लगे । यहाँ तक की गीत सुनकर मुझे आपनी आवाज ही पहचान में नहीं आई । "

ये तो हुई गायिका की बात पर इस गीत का सबसे सशक्त पहलू इसकी धुन है जो धीरे धीरे दिलो दिमाग में चढ़ती है और फिर उसके बाद उतरने का नाम नहीं लेती ।गीत के बीच की बंदिश और भारतीय वाद्य यंत्रों का प्रयोग मन को खुश कर देने वाला है । रहमान ने इस गीत को नुसरत फतेह अली खाँ को अपनी ओर से श्रृद्धांजलि बताया है । तो चलिए आप सब भी ८ वीं पायदान की इस मधुर तान का आनंद उठायें ।

दम दारा दम दारा मस्त मस्त
दारा दम दारा दम दारा मस्त मस्त
दारा दम दारा दम दम
ओ हमदम बिन तेरे क्या जीना!
तेरे बिना बेसुवादी बेसुवादी रतिया, ओ सजना !
हो, रूखी रे ओ रूखी रे
काटू रे काटे कटे ना
तेरे बिना बेसुवादी बेसुवादी रतिया, ओ सजना !

ना जा, चाकरी के मारे
ना जा, सौतन पुकारे
सावन आएगा तो पूछेगा, ना जा रे
फीकी फीकी बेसुवादी ये रतिया
काटू रे कटे ना कटे ना
अब तेरे बिन सजना सजना, काटे कटे ना..
काटे ना.. काटे ना..तेरे बिना
तेरे बिना बेसुवादी बेसुवादी रतिया, ओ सजना !


तेरे बिनाऽऽऽ चाँद का सोना खोटा रे
पीली पीली धूल उड़ावे, झूठा रेऽऽऽ
तेरे बिन सोना पीतल, तेरे संग कीकर पीपल
आ जा कटे ना रतियाऽऽ
तेरे बिना बेसुवादी बेसुवादी रतिया, ओ सजना....




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7 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

मनीष जी,
इस गीत को जितना सुनो मन ही नहीं भरता।
भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में अमर कृति होगा यह गीत।

साथ ही हैरते आशिकी वाले गीत के जो अनोखे शब्द गुलजार ने दिये हैं, वैसा गीत आज तक किसी फिल्म में नहीं लिखा गया।

इस गीत के बारे में मैं अपने ब्लाग पर लिखने वाला था मगर सच में यही सोचा कि आप इसे बेहेतर तरीके से प्रस्तुत कर सकते हैं, तो आपकी इस पोस्ट का ही इंतजार कर रहा था।
वाकई बेहतर प्रस्तुति।

अनुराग श्रीवास्तव on फ़रवरी 06, 2007 ने कहा…

गुलज़ार सा'ब भी कितने सहज शब्द लिख देते हैं 'निम्मी निम्मी ठंड', 'बेसुवादी' - मिट्टी की ख़ुश्बू आती है उनके गानों से.

rachana on फ़रवरी 06, 2007 ने कहा…

उम्दा गीतों के साथ ही आपकी खोजी जानकारी के लिये बहुत धन्यवाद!!

Udan Tashtari on फ़रवरी 07, 2007 ने कहा…

बहुत खुब जानकारी और उतना ही उम्दा गीत. बधाई.

Manish Kumar on फ़रवरी 07, 2007 ने कहा…

जगदीश जी सही कहा आपने इस गीत की धुन का खिंचाव अपनी तरह का है जो एक बार चढ़ जाए तो जल्दी उतरता नहीं है । जहाँ तक मुझे याद है कि हैरत ए आशिकी वाले गीत के बारे में आपने कुछ लिखा था । अगर उसका लिंक दें तो उसे पढ़ना चाहूँगा । उस वक्त ब्लॉग ना खोल पाने की वजह से पढ़ नहीं पाया था ।

Manish Kumar on फ़रवरी 07, 2007 ने कहा…

अनुराग बिलकुल सहमत हूँ तुम्हारी बात से !

समीर जी एवम् रचना जी मेरा प्रयास यही है कि गीत के पीछे छुपे गुमनाम चेहरों को गीत के साथ साथ आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ ।

बेनामी ने कहा…

हैरते आशिकी वाले गीत पर मैंने एक पोस्ट लिखी थी मगर एक गलती से उसे डिलीट कर बैठा।
पोस्ट सीधे लिखी थी तो कापी भी मेरे पास नहीं थी।
गीत को सुन सुन कर बोल लिखे थे महनत से।
दोबारा लिखने की हिम्मत ही नहीं हुई। :(

 

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