शुक्रवार, जनवरी 26, 2007

वार्षिक संगीतमाला गीत # १२ : कैसे ना हो कोई कैलाश का दीवाना !

मेरठ में जन्में बड़े हुए...फिर निकल पड़े दिल्ली अपने गुरू की तालाश में...!
खोज चलती रही, गुरू बदलते रहे...
१५ गुरूओं से शिक्षा ले चुके तो लगा कि क्यूँ ना अपने भाग्य को मायानगरी मुंबई में आजमाऊँ ।
मुंबई में जैसे-तैसे गुजारा चलने लगा ।
शुरू-शुरू में फकीरी का ये आलम था कि इनकी रातें अँधेरी स्टेशन के प्लेटफार्म पर कटा करती थीं।
और फिर इन्हें मौका मिला ऊपरवाले की खिदमत का एक सूफीनुमा गीत अल्लाह के बंदे के जरिये ..
और तबसे इनकी किस्मत ने ऍसा पलटा खाया कि पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत इन्हें नहीं पड़ी ।

पुराने दिनों को याद कर आज भी फक्र से बताते है की स्टेशन का वो चायवाला इनका करीबी मित्र हुआ करता था।
आज जब अपनी काली होंडा सिटी से स्टेशन के बगल से गुजरते हें ऊपरवाले को धन्यवाद अवश्य करते हैं।

जी हाँ मैं भारत में सूफी गायिकी के मशहूर सितारे कैलाश खेर की ही बात कर रहा हूँ । ए. आर. रहमान उनके बारे में कहते हैं कि कैलाश के संगीत में गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू है ।

गीतमाला की इस १२ वीं सीढ़ी पर मौजूद है उनके एलबम कैलासा से लिया उनका स्वरचित गीत। इसकी धुन बनाई नरेश परेश की जोड़ी ने।ये गीत सुनें..सीधे सादे शब्दों से लिपटा हर रंग आपको प्रेम रस से रंगा मिलेगा ।


प्रीत की लत मोहे ऐसी लागी
हो गई मैं मतवारी
बलि बलि जाऊँ अपने पिया को
कि मैं जाऊँ वारी वारी
मोहे सुध बुध ना रही तन मन की
ये तो जाने दुनिया सारी
बेबस और लाचार फिरूँ मैं
हारी मैं दिल हारी..हारी मैं दिल हारी..

तेरे नाम से जी लूँ, तेरे नाम से मर जाऊँ..
तेरे जान के सदके में कुछ ऐसा कर जाऊँ
तूने क्या कर डाला ,मर गई मैं, मिट गई मैं
हो री...हाँ री..हो गई मैं दीवानी दीवानी

इश्क जुनूं जब हद से बढ़ जाए
हँसते-हँसते आशिक सूली चढ़ जाए
इश्क का जादू सर चढ़कर बोले
खूब लगा दो पहरे, रस्ते रब खोले
यही इश्क दी मर्जी है, यही रब दी मर्जी है,
तूने क्या कर डाला ,मर गई मैं, मिट गई मैं
हो री...हाँ री..हो गई मैं दीवानी दीवानी

कि मैं रंग-रंगीली दीवानी
कि मैं अलबेली मैं मस्तानी
गाऊँ बजाऊँ सबको रिझाऊँ
कि मैं दीन धरम से बेगानी
की मैं दीवानी, मैं दीवानी

तेरे नाम से जी लूँ, तेरे नाम से मर जाऊँ..
तेरे जान के सदके में कुछ ऐसा कर जाऊँ
तूने क्या कर डाला ,मर गई मैं, मिट गई मैं
हो री...हाँ री..हो गई मैं दीवानी दीवानी




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6 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari on जनवरी 26, 2007 ने कहा…

वाह, वाह, क्या खुब मेरी पसंद समझ गये हो, बहुते सही महाराज..खेंचे रहो.

rachana on जनवरी 26, 2007 ने कहा…

बढिया है!!

बेनामी ने कहा…

सही कहा मनीष जी आपने कैसे ना हो कोई कैलाश का दीवाना।
किसी और गायक की नकल करने के बजाय कैलाश ने अपनी अलग शैली बनाई और कामयाब रहे बाकी आजकल के लगभग सारे गायकों पर रफ़ी साहब और किशोर दा का प्रभाव स्पष्ट महसूस होता है।

बेनामी ने कहा…

well done manish.lage raho.

Manish Kumar on जनवरी 29, 2007 ने कहा…

समीर जी ,रचना जी शुक्रिया !

कान्ति दी हौसला बढ़ाने का शुक्रिया !

Manish Kumar on जनवरी 29, 2007 ने कहा…

सागर भाई आपके विचार से पूर्णतः सहमत हूँ । कैलाश खेर की गायिकी में मौलिकता स्पष्ट दिखती है ।
वैसे बाकी गायकों को भी मैं प्रतिभाशाली मानता हूँ । रफी और किशोर जैसे महान गायकों से हमारी पीढ़ी के गायक कुछ ना कुछ प्रभावित होंगे ही, आखिर जिंदगी भर तो इन्हें ही सुना है इन्होंने ।:)

 

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